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निरफल, ज्ञान बिना जिय ज्योतीरे || ३ || छाया हीन तरोवर को छवि, नैनानंद नहिं होतीरे ॥ ४ ॥
६४ - राग देश |
अरुब्रह्मकूं जाना नहीं ॥ टेक ॥ अनुभावकूं ठाना नहीं ।
मुक्तिकी आशा लगी, घर छोड़ के जोगी हुवा, जिन धर्मकूं अपना सगा अज्ञान ते माना नहीं ॥ १ ॥ जाहिर में तू त्यागी हुवा, वातिन तेरा छाना नहीं । ऐ यार अपनी भूल में, विषबेल फल खाना नहीं ॥ २ ॥ संसार कू त्यागे बिना, निर्वाण पद पाना नहीं । संतोष बिन अब नैनसुख, तुमकू मज़ा आना नहीं ॥ ३ ॥
६५ - राग सारङ्ग ।
न कर करम की तू आसरे, अरेजिया न कर करमकी तृ आसरे ॥ टेक ॥ अंतराय भई प्रथम जिनेश्वर, जाके सुग्पति दासरे । दरव क्षेत्र अरुकाल भाव लखि, तजि विधि को विसवासरे ॥ १ ॥ छहो खंडको नाथ भरथ नृप, मान गलत भयो तासरे । सीता सती इंद्र करि पूजित भयो बिजन बन वासरे ॥ २ खगचर वंश तिलक नृप रावण, करमनतै भयो नाशरे । तीर्थंकरकूं होत परिषद, करम बड़े दुख वासरे ॥ ३ ॥
पीवत खासरे ।
आशा करत करम सरसावत, ज्यों पय नैन सुख्य चिरकाल भयो अब काढ़ो गलकी फांसरे ॥ ४ ॥