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________________ जय जलनिधेश, पुन्यातम भारी ॥३॥ भजरेमन अश्वलेन, सिद्धारथ सिद्धदेन । ये जिन चौबीस तात, एका भवतारी ॥४॥ ३-चालधुरपद (तीर्थंकरों की माता के नाम) सुनरेमन मेरी बात, जाएजिन जगत तात । ऐसी जिन मात ताहि, वंदन नित करनी ॥ टेक ॥ मरुदे बिजया मतीय, श्रीयुतघेणा लतोय । सिधअर्था मंगलीय सीमा सुखभरणी ॥१॥ पृथवी शुभलक्षणीय, रीमारु सुनंदनीय । बिमला जयदेबि रमा, सूर्या दुखहरणी ॥२॥ सुभवतधरणी सतीय, एला अरुश्रीमतीय। मित्रा सारस्वतीय, श्यामा भवतरणी ॥३॥ विशिषा शिव देवि माय, वामा त्रिशलादिध्याय । वंदू वह कोष जगत, चूडामणि धरणी॥४॥ ४-चालधुरपद (तीर्थंकरों के सोलह जन्म नगर) कौशल सावत्थि धाम, काशी कोशं विठोम । तीर्थ कर जन्म ग्राम, तीरथ कर प्यारे ॥ टेक ॥ चंपापुर चंद्रपुर भद्दलपुर, सिंहपुर । मिथुलापुर रत्नपुर गजपुर नितजारे ॥१॥ काफंदी कपिलादि, सूरजपुर राखयाद । जाकरकुषअन्नपूर मुनिसव्रतध्यारे ॥२॥ कुंडलपुर वीरदेव, षोडश हैं नगर एव । जन्मे भगवंत जहां आए सुरसारे ॥३॥ घर घर भई रत्न वृष्ठि, धर्मातम भई सृष्ठि सोभा बरनी न जाय, नरभव फलपारे ॥४॥ ५-चालधुरपद (तीर्थंकरों के चरण चिह्न) भावू जिन चरण चिह्न, प्रभु के तनतें अभिन्न । सुनकै चित हो प्रसन्न, संशय सब टारिये ॥ टेक ॥ वृप गज घोटक कपीश,
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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