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________________ [ ६ ] मैचर अंभोजदोश । स्वस्तिक निशईश मच्छ, श्रीवत्ल विचारिये ॥२॥ पंगपग महिषा बराह, बाजरु बज्रायुधाह । मृग बोक धनुर्गिनाह, कलशा उरधारिये ॥२॥ कच्छप अरुकमलशंप, सर्परु केहरिनिशंक । लखिकै जिन अंक नाम, निश्चय चित पाड़िये ॥३॥ धरिये उर ध्यान देव, करिये प्रभु चरण सेव । जाते भव सिंधु खेव, शिवमे ले तारिये ॥४॥ ६-चालधुरपद (गुरु नमस्कार) बंदू नित्रंथसाधु, त्यागी जिनगज उपाधि । आतम अनुभव अराधि, परपरणतिछारी ॥ टेक ॥ तजि तजि पदचक्रवर्ति, मन बचत न हो निवर्त । पायन पृथिवी विचर्त, जिन दिक्षा धारी ॥६॥ सम दम संवरसंभार, निर्जर कर कर्मटार । षट तन प्राणी उबार, करुणा विस्तारी ॥ जीते त्रय शल्यदल्ल, सुर गि रसम भये अचल्ल । रत्नग्य धरणमल्ल, कष्ट सह भारी ॥३॥ जय जय महमा निधान, जंगम तीरथ समान । मेरे उर वसो आन, बंद जगतारी॥४॥ ७-चालधुम्पद [जिन बाणी नमस्कार] निकली गिरवर्द्धमान, सेती गंगा समान । गोतम मुखपरी आन, सारद जगमाता ॥ टेक ॥ तारेत भ्रमगज सुदंत, जड़ता तपकरि प्रशंत । रत्नाकर ज्ञान अंत, पहुँची भवत्राता ॥१॥ जाम सप्तांगभंग, उ? निर्मल तरंग । अमृत को कोर सोख, मारग की दाता ॥२॥ आदिरु मध्यावसान, निर्मल किरपा निधान । धारा पर वाह वान, त्रिभवन बिख्याता॥३॥ वंदै दृग सुक्खदास, मेरे उर कर निवास । गाऊं जिनगुण बिलोल, कीजै सुख साता ॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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