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महाचंद जैन भजनावली। [२६
(३७) मिटत नही मेटेसै यातो होणहार सोई होय ॥ मिटत न० ॥टेर ॥ माघनंद मनिराज_जी गये पारणे हेत । व्याह रच्यो कुमहार की धीसू बासण घड़ि घड़ि देत ॥ मिटत० ॥१॥ सीता सती बड़ी सतवंती जानत है सब कोय । जो उदियागत टले नहीं टालो कर्म लिखा सो ही होय ॥ मिटत० ॥२॥ रामचन्द्रसे भर्ता जाके मंत्री बड़े बिशेष । सीता सुख भुगतन नहीं पायो भावनि बड़ी बलिष्ट ॥ मिटत० ॥३॥ कहां कृष्ण कहां जरद कुवरजी कहां लोहाकी तीर । मृगके धोके बनमें मास्यो बलभद्र भरण गये नीर मिटत० ॥ ४॥ महाचन्द्रः नरभब पायो तू नर बड़ो अज्ञान। जे सुख भुगते भाव प्रानी भजलो श्रीभगवान ॥ मिटत० ॥ ४॥
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___ तुम्हें देखि जिन हर्ष हवो हम आज ॥ टेर जन्मत सहस्र नयन हरि रचिये तुम छबि देखन