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________________ महाचंद जैन भजनावलो। 5 हारी॥ कहो कैसे होय तिहारी ॥दोहा ॥ राव गले वलवंत महा तीनखंडो ईश । परत्रिया वाँछे दुखभोगे नर्कमांहि वरील ॥ पराई नारि तजो प्यारी ।। तजो० ॥ ७॥ जुवात पांडव बक पललें ॥ मयले जादव बहु गिलते ॥ वैश्यां चारू दत्त मलतें ॥ ब्रह्मदत्त नप खेट वलः ॥दोहा ॥ चोरी शिवभूति दुखी रावण परत्रिय संग। एक एकसे हो अति दुखिया सातनको कहारंग कहत बुध महाचन्द्र हारो॥ तजोभवि०॥८॥ (३६) धमाल। __ नेमि रमते वालब्रह्मचारी ॥नेमि० टेर॥ हांस्य विनोद कर हरि रामा देवर लखि निज संसारी ॥ नेमि० ॥ १ ॥ कोऊ कहत देवर तुम पररण देखो पोड्स सहन कृष्णधारी ।। नेमिः ।। २॥ कोई कहें देवर तुम नहीं सूर ये कहु तिय तुम नहिकारी ॥ २॥ काम खेल करती कर करसे नेमिनाथ न भये विकारी ॥ ४ ॥ बुध महाचन्द्र शीलकी महिमा तियमधि रहते अविकारी ॥५॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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