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महाचन्द जैन भजनावली। [२० तजो॥३॥ नोच कुकर खप्पर ज्यों हैं ॥ रजक की शिलाहोत त्यों हैं। नीच अर उच्च सेय यों हैं ॥ तजो वैश्या बहु दुखकौं है ॥ दोहा ॥ चारु दत्तसे सेठहुये बेश्यातै दुखरूप। सब धन खोय होय अति फीका पड़े गंथग्रह कूप ॥ तजो तात गनिका यारी ॥ तजो० ॥ ४॥ रोज भृग आदि जीवघातें ॥ शिकारी कहैं लोग तातें ॥ हो तबहु पाप खानि यात ॥ पापकरि जाय नर्क सातै ॥ दोहा॥ ब्रह्मदत्त नृप खेट” दंड लहे विधि पंच । परभवमें अति दुक्ख भोगिकै लह्यो खेट फलसंच ॥ खैटते होत बहुतख्वारो ॥ तजो० ॥ ५ ॥ लोभके लम्पट जीव हैं ॥ कपटकी खानि सदा तैं हैं॥ करें चौरीपर गृहत हैं ॥ खाय परिवार सहित वे हैं ॥ दोहा ॥ सत्य घोष मंत्री लहे चो रिरत्न शुभपंच। मल्ल मुष्टि गौमय हराधन दंड तीन लहे खैच ॥ होय यही दुक्ख भयकारी ॥ तजो॥६॥ परत्रिया सेवन दुखकारी ॥ विचारी ना कछु अबिचारी ॥ पति निज संग विचारण