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महाचंद जैन भजनावली।
(३५) लावनी मरहठी। तजो भविव्यसन सात सारी ॥ लगे निज कुलकै अतिकारी ॥ टेर ॥ जुवा सरव द्रव्यनाशे॥ करै नर मिल तांको हाँसै ॥ सवनमें नहीं प्रतीत तांस ॥ जुवारी घले राज फांसें ॥ दोहा॥ पांडवसे हो गये वली जबातें अतिख्वार। वारा वरसतक राज हारके अले महा वनचार ॥ तजो जूवा बहु दुखकारी । तजो० ॥१॥ लाँसते जीव घातते हैं। जीभके लम्पट लेबै हैं ॥ नर्कमें दुक्व लहेव हैं। पिंड अघको सुखले हैं। दोहा वक राजा बहु पुरूषहते मांस भक्षणके काज । पांडव भीमवलीसे पाये सरण नर्क दुख पाज॥ मांसत दुखपाने सारी ॥ तजो० ॥२॥होत मदिरासे मति हानी ॥मात अरु युवती समजानी वस्त्र की भी न शुद्धिठानी ॥ कहो वृषकी सुधि क्यों मानी ॥ दोहा ॥ जादव कुल मद्य पीयके द्वीपायणके योग । सश्न भये हैं सहित द्वारिका फेर नही संयोग ॥ मद्य सवसुधि नाशकारी॥