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________________ महाचंद जैन भजनावली | w. ~3 दशही प्रकारा हैं | अरो० ॥ ८ ॥ मागधि भाषा सब जीव मैत्री सब ऋतु फूल फलारा हैं । दर्प भू अनु पवन हर्ष सबै जोजन मरुत सवारा है ॥ ० ॥ ६ ॥ मेघागंधो पदतले कमल नभ भजय देवारा है | धर्मचक्र आगे मंगल बसु यह चौदाजु सुरारा हैं ॥ १०॥ ज्ञान अनंत बीर्य अनंतादर्श अनंत सुखारा है । ऐसा देव नि रंजन लखि बुधिमहाचन्द्र सिरधारा है ॥ ११ ॥ [ २५ ( ३४ ) मुनिजन जगजीव दयाधारी । मुनि ॥ टेर ॥ पक्षी जटाउ ज्ञान बसत बन ताको जैन धर्मकारी ॥ सुनि० ॥ १ ॥ सम्यक दर्शन प्रथम बतायो पांच बिस्तारी ॥ मुनि० ॥ २ ॥ धर्मध्यान रतकरके ताको हिंसक भाव सब निवारी ॥ मुनि० ॥ ३ ॥ ऐसे | मुनिवर पुन्य उदयतै भवि जीवनको मिलतारी ॥ मुनि० ॥ ४ ॥ बुधमहाचन्द्र मुनीश्वर ऐसे हम मिलनेकी बांछा भारी ॥ मुनिजन० ॥ ५ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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