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महाचन्द जैन भजनावली। [१५ टेर॥ कहा दिखावत हमको तेरी लंकाराजधानी तेरा राज्य बिभो हम दीसे जं जोणतृण समानी॥ सीता०॥१॥शीलवंत पुरषनके दारिद सोहू सुखदानी । शील हीन तुमसे पापिनके सम्पति दुखदानी ॥ सीता०॥२॥ हमरे भरता रामचन्द्र देवर लक्ष्मण जानी। महा बलवंत जगतमें नामी तोसे नहीं छानी ॥ सीता० ॥३॥ चन्द्रनखा तेरी बहिन तासको पुत्ररहित ठानी ॥ खरदूषण हति रंडाकीनी सोते नहींमानी॥ सीता०॥४॥जोतू कहै हम हैं विद्याधर चलतगगन पानी। काग कहा नहीं गगन चलत है सौ औगुन खानी ॥ सीता०॥ ५॥ प्रतिनारायण नकसूमिमें कहती जिनबानी। बुधमहाचन्द्र कहत है भावी मिटै न मेटानी ॥ सीता०॥६॥
(२२) रावण कहत लंकापति राजा सुन सीताराणी । काम अग्नि भस्मित हमको तू दे सरीर पानी ॥टेर ॥. देख हमारी तीनखंडको लंका