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________________ १६] महाचन्द जैन भजनावली। राजधानी। भूमिगोचरी अरु विद्याधर रहत छदिखानी ॥ रावण ॥ १ ॥राज हमारो तीन खंड मंदोदरीसी रानी। इन्द्रजीतसे पुत्र विभीषणसे भाई ज्ञानी ॥ रावण ॥२॥ इन्द्र आदि विद्याधर हमने जीते सब जानी। छत्र फिरत इक हमरे ऊपर और नही ठानी ॥ रावण ॥३॥ रंक कहां तेरो भर्ता हमसे रामचन्द्र मानी महा दुर्बल बनबासी दीसे हमसे रहे छानी ॥ रावण. ॥४॥ इत्यादिक मानी नही सीता शीलरत्न खानी। बुधमहाचन्द्र कहत रावणकी सुधि बुधि बिसरानो ॥ ५॥ (२३) __विषय रस खारे, इन्है छाड़त क्यों नहिं जीव। बिषयरस खारे ॥ टैर॥ मात तात नारी सुत बांधव मिल तोकूभरमाई ॥ विषय भोगरसजाय नर्क तू तिल तिल खंड लहाई ॥ बिषय० ॥ १ ॥ मदोनमत्त गज बस करनेकू कपटकी हथनी बनाई। स्पर्शन इन्द्रिय बसि होके
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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