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महाचन्द जैन भजनावली।
रा॥ देखो० ॥२॥ काय बचन मन स्वासोछ्वा' सजू थावर त्रसकरि डारा। बुधमहाचन्द्र चेतकरि निशदिन तजि पुद्गलपतियारा ॥ यह०॥३॥
(२०) अमृत भर झुरिझुरि आवे जिनबानी॥ अमृत टेर ॥ द्वादशांग बादल व्हे उमड़े ज्ञान अमृत रसखानी ॥ अमृत० ॥१॥ स्याद्वाद बिजुरी अति चमके शुभ पदार्थ प्रगटानी। दिव्यध्वनी. गंभीर गरज है श्रवण सुनत सुखदानी ॥अमृत॥ २॥ भव्यजीव मन भूमि मनोहर पाप कूड़कर हानी । धर्म बीज तहां ऊगत नीको मुक्ति महाफल ठानी ॥ अमृत०॥३॥ ऐसो अमत झर अति शीतल मिथ्या तपत भुजानी। बुधमहाचन्द्र इसी झर भीतर मग्न सफल सोही जानी ॥ अमृतझर० ॥ ४॥
(२१) सीतासती कहत.है रावण सुनरे अभिमानी तुम कुलकाष्ट भस्मके कारण हमें आगि आनी॥