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महाचंद जैन भजनावली। [१३
(१८) शीख सुगुरू नित्य उर धरो सुन ज्ञानी जी। एक भजो तज दोय ज्ञानीजी ॥ शीख ॥ टेर ॥ तीन सदा उरमें धरो सुन ज्ञानीजी, तजो चारको हेत ज्ञानीजो॥शीख॥१॥ पंचमको नित संग करो सुन ज्ञानीजी,षट तज नीका जानि ज्ञानीजो ॥२ सातनको चितवन करो सुन ज्ञानीजी,आठ तजो दुख कार ज्ञानीजी ॥ शीख ॥३॥ नौ हृदय नित धारिये सुन ज्ञानीजी,दश फुनि ग्यारा धारि ज्ञानी जी ॥ शीख ॥ ४॥ बारह फुनि तेरह भजो सुन ज्ञानीजी, बुधमहाचन्द्र निहार ज्ञानीजी ॥ शी०५
(१६) देखो पुद्गलका परिवारा जामें चेतन है इक न्यारा ॥ देखो॥ टैर ॥ स्पर्श रसना घ्राण नेत्र फुनि श्रवणपंच यह सारा । स्पर्श रस फुनि गंध बणं स्वर यह इनका विषयारा ॥ देखो० ॥१॥ चुधातृषा अरु राग द्वेष रुज सप्तधातु दुखकारा बादर सूक्ष्मस्कंध मणु आदिक मूर्तिमई निरधा