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________________ बुधजन विलास ६३ || यौ० ॥२॥ तुम मुखचंद निहारत ही अब, सब ताप मिटायो । बुधजन हरष भयौ उर ऐसे, रतन चिन्तामनि पायौ || यौ० ॥ ३ ॥ ( ११५ ) राग - परज महाराज, थांनै सारी लाज हमारी, छत्रत्रयधारी || महाराज• ॥टेक॥ मैं तौ थारी अद्भुत रोती, नीहारी हितकारी || महाराज• ॥ १ ॥ निंदक तौ दुख पावै सहजैं, बंदक ले सुख भारी । सी अपूर्वं वीतरागता, तुम छविमाहिं विचारी । महाराज० ॥२॥ राज त्यागिकै दीक्षा लीनी, परजनप्रीति निवारी | भये तीर्थंकर महिमाजुत अब, संग लिये रिध सारी || ३ || मोह लोभ क्रोधादिक मारे, प्रगट दया के धारी । बुधजन बिनवे चरन कमलकों, दीजे भक्ति तिहारी || महाराज० ॥४॥ ( ११६ ) मुनि बन आये बना ॥ मुनि० ॥ टेक ॥ शिव वनरी व्याहनकों उमगे, मोहित भविक जना ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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