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बुधजन विलास मुनिः ॥१॥ रतनत्रय सिर सेहरा बांधे, सजि संवर बसना। संग बराती द्वादश भावन, अरु दशधर्मपना । मुनि०॥२॥ सुमति नारि मिलि मंगल गावत,अजपा (?) गीत घना। राग दोष की आतिशबाजी, छूटत अगनि-कना॥ मुनि ॥३॥ दुविधि कर्मका दान बटत है, तोषित लो. कमना। शुकल ध्यानकी अगनि जलाकरि,हीमें कर्मघना। मुनि० ॥४॥ शुभ बेल्यां शिव बनरि बरी मुनि, अद्भुत हरष बना । निज मंदिरमें निश्चल राजत बुधजन त्याग घना ।।मुनि०।५।
(११७) लबँजी प्राजचंद जिनंद प्रभूकौं, मिथ्यातम मम भागौ।लखें०॥टक।। अनादिकालकी तपति मिटी सव सूतौ जियरौ जागौ ॥ लबँ० ॥शा निज संपति निजही मैं पाई तब निज अनुभव लागौ । बुधजन हरपत ग्रानंद वरपत अमृत झरमैं पागो॥ लखें ॥२॥