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वुधजन विलास
(१०८) राग-कालिंगड़ो। अाज मनरी बनी छै जिनराज ॥ अाज०॥ टेक॥ थांको ही सुमरन थांको ही पूजन,थांको तत्वविचार । अाज०॥१॥थांके बिळूरै आत दुख पायौ, मोपै कह्यौ न जाय । अब सनमुख तुम नयनों निरखे, धन्य मनुष परजाय अाज०॥२॥ आजहि पातक नास्यौ मेरो, ऊतरस्यौं भव पार । यह प्रतीत बुधजन उर आई, लेस्यौं शिवसुख सार ।। प्राज०॥३॥
(१०६) हा जी म्हे निशिदिन ध्यावां, ले ले बलहारियां ॥ होजी० ॥ टेक ॥ लोकालोक निहारक स्वामी, दीठे नैन हमारियां हो जी० ॥१॥षट चालीसौं गुनके धारक, दोष अठारह टालियां। बुधजनःशरनैं श्रायौ थांके,थे शरणागत पालियां ॥हो जी० ॥२॥
(११०) राग-पराज म्हे तो ऊभा राज थान अरज करां छां मानौं महाराज म्हे० ॥ टेक ॥ केवलज्ञानी त्रिभुवन