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बुधजन विलास - ॥१॥ ये तिन सुत व्योहार कथनमैं, निश्चय एक चिदानंद गाया । अपरस अवरन अरस अगंधित, चुवजन जानि सु सीस नवायर्या । कंचन ॥२॥
धनिसरधानीजगमैं ज्यौं जलकमलनिवास। धनि० ॥ टेक ॥ मिथ्या तिमिर फट्या प्रगट्यो शशि, चिदानंद परकास ॥ धनि ॥१॥ पूरब कर्म उदय मुख पावें भोगत ताहि उदास । जो दुखमैं न विलाप करें, निरवेर सहैं तन त्रास॥ धनि ॥२॥ उदय मोहचारित परवाश है बन नहिं करत प्रकास । जो किरिया करि हैं निर वांछक, करें नहीं फल आस ॥ धनि० ॥३॥ दोषरहित प्रभु धर्म दयाजुत, परिग्रह बिन गुरु तास। तत्वारथरुचि है जाकेट बुधजनतिनका दास ॥ धनि० ॥ ४॥
(४७) गग-सारंग। बाह भई हो,तुम निरखत ज़िनराय, वर्धा