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निश्चल पाणि पात्रम् उपदिष्ट जिनवरेन्दै ।
एकोपि मोक्ष मार्गः शेषाश्चमार्गाः सर्वे ॥ अर्थ-वन को न धारण करना दिगम्बर यथा जात मुद्रा का धारण करना पाणि पात्र भोजन करना अर्थात् हाथ में ही भोजन रखकर लेना यही अद्वितीय मोक्ष मार्ग जिनेन्द्र देव ने कहा है। शेष सर्व ही अमार्ग हैं, मोक्ष मार्ग नहीं हैं।
जो संजमे सुसहिओ आरम्भ परिग्गहेसु विरऑवि । सो होइ वंदणीओ समुरासुर माणुसे लोए ॥ ११ ॥
यः संयमेषु सहितः आरम्भ परिग्रहेषु विरतः अपि । ___ स भवति वन्दनीयः ससुरासुर मानुषे लोके ॥
अर्थ-जो संयम सहित है और आरम्भ परिग्रह से विरक्त हैं वह ही इस सुर असुर और मनुष्या करि भरे हुवे लोक मैं बन्दनीक अर्थात् पूज्य होता है।
जे वावीस परीसह सहति सत्तीस एहि संजुत्ता । ने होंति वंदणीया कम्म क्खय निजए साहू ॥ १२॥
ये द्वाविंशति परिपहाः सहन्ते शक्ति शतैः संयुक्ताः । ते भवन्ति वन्दनीयः कर्म क्षय निर्जरा साधवः ।।
अर्थ-जो साधु अपनी सैकड़ों शक्तियां सहित बाईस २२ परीपह को सहते हैं वह कर्मी को क्षय करने के अर्थ कर्मों की निर्जरा करते हैं अर्थात् उनकं जो कर्मा की निर्जरा होती है उससे आगामी कर्म बन्धन नहीं होता है, वह साधु बन्दना करने योग्य हैं।
अवसे साजे लिंगा दसणं णाणेण सम्म संजुत्ता। चेलेण य परिगहिया ते भणिया इच्छणिज्जाय ॥१३॥ अवशेषा ने लिङ्गिनः दर्शन ज्ञानेन सम्यक्संयुक्ताः । चेलेन च परिग्रहतिा ते मणिता इच्छा ( कार ) योग्याः ॥