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( १२ )
२ सूत्र पाहुड़ ।
अरहंत भासियच्छं गणहर देवेहिं गंथियं सम्मं । सूत्तच्छ मग्गणच्छं सवणा साहेति परमच्छं || १ ॥ अर्हन्त भाषितार्थं गण घर देवै ग्रंथितं सम्यक् । सूत्रार्थ मार्गणार्थं श्रमणा साधुवन्ति परमार्थम् ॥
अर्थ -गणधर देवों ने जिस को गूंथा है अर्थात् रचा है, जिम में अरहन्त भगवान का कहा हुवा अर्थ है और जिसमें अरहन्त भारत अर्थ के ही तलाश करने का प्रयोजन है वह सूत्र है उमही के द्वारा मुनीश्वर परमार्थ अर्थात् मुक्ति का साधन करते हैं ।
सुत्तम्मि जं सुदिहं आइरियं परंपरेण मग्गेण ।
ाऊन दुविह सुत्तं बहइ सिव मग्ग जो भव्वो ॥ २ ॥ सूत्रयत् सुदिष्टं आचार्य परम्परीण मार्गेण ।
ज्ञात्वा द्वितीधं सूत्रं वर्तति शिव मार्गयो भव्यः ॥
अर्थ - उन सर्व भाषित सूत्रों में जो भले प्रकार वर्णन किया है वह ही आचार्यों की परम्परा रूप मार्ग से प्रवर्तता हुवा चला आरहा है, उसको शब्द और अर्थ द्वारा जान कर जो भव्य जीव मोक्ष मार्ग में प्रवर्तत हैं वह ही मोक्ष के पात्र हैं ।
सुत्तहि जाण माणो भवस्स भव णासणं च सोकुणदि । सूई जहा अत्ता णासदि सुते सहा गांव || ३ ॥
सूत्रहि जानानः भवस्य भव नाशनं च सः करोति । सूची यथा असूत्रा नश्यति सूत्रं सह नापि ॥
अर्थ- जो उन सूत्रों के ज्ञाता हैं वह संमार के जन्म मरण का नाश करते हैं, जैसे बिना सूत अर्थात् डारे की सूई खोई जाती है और तागे सहित होतो नहीं खोई जाती है ।
भावार्थ - जिनेंद्र भाषित सूत्र का जानने वाला जीव संसार में नष्ट नहीं होता है किन्तु आत्मीक शुद्धी ही करता है ।