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( १३४ ) काल में सिद्ध हुवे हैं और जे आगामि काल में सिद्ध होगे वह सर्व सम्यक्त्व का महत्व जानो।
भावार्थ-सम्यग्दर्शन मोक्ष का प्रधान कारण है, वह सम्यग्दर्शन ग्रहस्थ श्रावाको मैं भी होता है इससे ग्रहस्थ धर्म भी मोक्ष का कारण जानो।
ते धण्णा सुकयच्छा तेसूरा तेवि पंडिया मणुया। सम्मत्तं सिद्धियरं सिवणेवि ण मइलियं जेहि ॥८९॥
ते धन्याः सुकृतस्थाः ते शूरा तेपि पण्डिता मनुजाः । सम्यक्त्वं सिद्धिकरं स्वप्नेपि न मलितं यः ॥ अर्थ-ते ही पुरुष धन्य हैं तेही पुण्यवान हैं तेही सूरिमा हैं और पण्डित हैं जिन्होंने स्वप्न में भी सर्व सिद्धि करने वाले सम्यक्त्व को दूषित नहीं किया है।
हिंसा रहिए धम्मे अट्ठारसदोस वज्जिए देवे । णिग्गंथेप्पवयणे सद्दहणं होदि सम्मत्तं ॥१०॥
हिंसारहिते धर्मे अष्टादश दोष वर्जिते देवे । निम्रन्थे प्रवचने श्राद्दधनं भवति सम्यक्त्वम् । अर्थ-हिंसा रहित धर्म, क्षुधादिक अठारह दोष रहित देव और निर्ग्रन्थ अर्थात् दिगम्बर मुनि और प्रवचन अर्थात् जिनबाणी में श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
जह जायरूव रुवं सुसंजयं सव्व संगपरिचत्तं । लिंगं ण वरा वेक्खं जो मण्णइ तस्स सम्मत्तं ॥११॥ __ यथा जातरूपं रुपं सुसंयतं सर्व संग परित्यक्तम् ।
लिङ्गं न परापेक्षं यःमन्यते तस्य सम्यक्त्वम् ।।
अर्थ-मोक्ष मार्गी साधुवों का लिङ्ग (भेश ) यथा जातरुप है अर्थात् जैसे बालक माता के गर्भ से निकला हुआ बालक निर्विकार होता है तैसे निर्विकार है। उत्तम है सयम जिसमें, समस्त परिग्रह रहित है, जिसमें पर वस्तु की इच्छा नहीं हैं ऐसे स्वरुप को जो माने है तिसके सम्यक्त्व होता है।