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अर्थ----आहार जय (कम से माहार को घटाना और वेला तेला पक्षांपवास मासोपवास आदि करना) आसनजय (पद्मासनादिक से २१४६ घड़ी वा दिन पक्ष मास वर्ष तक तिष्टा रहना) निद्राजय (एक पसवाड़ साना एक प्रहर सोना न साना)इनका अभ्यास जिनेश्वर की आशानुसार करकं गुरु के प्रशाद से आत्मस्वरूप को जान कर निज आत्मा को ध्यावा।
अप्पा चरित्तवंतो दंसणणाणेण संजुदो अप्पा । सो झायबो णिच्चं णाऊण गुरुपसाएण ॥ ६४ ॥ __ आत्मा चरित्रवान् दर्शन ज्ञानेन संयुतः आत्मा । __स ध्यातव्यो नित्यं ज्ञात्वा गुरु प्रसादेन ॥
अर्थ--आत्मा चारित्रवान है आत्मा दर्शन ज्ञान सहित है ऐसा जान कर वह आत्मानित्य ही गुरु प्रशाद स ध्यावने योग्य है।
दुक्खेण जइ अप्पा अप्पाणाऊण भावणा दुक्खं । भाविय सहाव पुरिसो विसएसु विरच्चए दुक्खं ॥६५॥
दुःखन ज्ञायते आत्मा आत्मानं ज्ञात्वा भावना दुःखम् । भावित स्वभाव पुरुषो विषयेषु विरच्यते दुःखम् ।।
अर्थ-बड़ी कठिनता से आत्मा जाना जात है और आत्मा को जानकर उसकी भावना ( अर्थात आत्मा का वारवार अनुभव ) करना कठिन है और आत्म स्वभाव की भावना होने पर भी विषयों ( भोगादि ) से विरक्त होना अत्यन्त कठिन है।
ता मणणजइ अप्पा विसएसु णरोपवदए जाम । विसए विरत्त चित्तो जोई जाणेइ अप्पाणं ॥६६॥
तावत् न ज्ञायते आत्मा विषयेषु नरः प्रवर्तते यावत् । विषय विरक्त चितः योगी जानाति आत्मानम् ॥
अर्थ--जब तक यह पुरुष विषयों में प्रवते है तब तक आत्मा को नहीं जाने है । जो योगी विषयों से विरक्त चित्त है वही आत्मा को जान है।