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याद्वादमं.
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| है । और जो सचेतन स्थावर वृक्ष आदि हैं, उनके भी पूर्वोपार्जित शुभ-अशुभकर्मोंके उदयसे ही विचित्रता है । तथा जो अचेतन स्थावर हैं, वे जो जंगम और सचेतन स्थावर हैं, उनके कर्मों के फल भोगनेकी जो योग्यता है उसके साधन है अर्थात् इनके द्वारा जीवोंको | खोपार्जित शुभ अशुभ कर्मों का फल भोगना पड़ता है, इस कारण उन अचेतन स्थावरोंके अनादिकालसे ही सिद्ध वैचित्र्य है ।
नाप्यागमस्तत्साधकः । स हि तत्कृतोऽन्यकृतो वा स्यात् । तत्कृत एव चेत्तस्य सर्वज्ञतां साधयति । तदा तस्य महत्त्वक्षतिः । स्वयमेव स्वगुणोत्कीर्त्तनस्य महतामनधिकृतत्वात् । अन्यच्च तस्य शास्त्रकर्त्तृत्वमेव न युज्य| ते । शास्त्रं हि वर्णात्मकम् । ते च ताल्वादिव्यापारजन्याः । स च शरीर एव सम्भवी । शरीराऽभ्युपगमे | तस्य पूर्वोक्ता एव दोषाः । अन्यकृतश्चेत्सोऽन्यः सर्वज्ञोऽसर्वज्ञो वा । सर्वज्ञत्वे तस्य द्वैतापत्त्या प्रागुक्ततदेकत्वाभ्युपगमबाधः । तत्साधकप्रमाणचर्चायामनवस्थापातश्च । असर्वज्ञश्चेत् कस्तस्य वचसि विश्वासः ।
अब यदि कहो कि, आगम प्रमाण जो है सो उस ईश्वरके सर्वज्ञत्वको सिद्ध करनेवाला है । सो भी नही । क्योंकि, वह आगम ईश्वरका किया हुआ है ? वा अन्य किसीका ? यदि कहो कि, ईश्वरका किया हुआ है तो यदि ईश्वरका किया हुआ आगम ही ईश्वरके सर्वज्ञत्वको सिद्ध करेगा तब तो ईश्वरके महत्त्व ( बड़प्पन ) का नाश होगा । क्योंकि, महत्पुरुष स्वयमेव ( आप ही ) अपनी प्रशंसा करना स्वीकार नही करते है । और विशेष यह है कि, वह तुम्हारा ईश्वर शास्त्रका करनेवाला ही नही हो सकता है। क्योंकि शास्त्र अक्षरों रूप है, वे अक्षर तालु ( तालवे ) आदिके व्यापार ( प्रयत्न ) से उत्पन्न होते है, और वह तालु आदिका व्यापार शरीरमें ही हो सकता है । यदि ईश्वरके शरीर मानो तो जो दोष ईश्वरको शरीर माननेमें पहले कहे है, वे ही यहां भी होवेंगे । यदि कहो कि, आगम किसी अन्यका किया हुआ है, तो हम पूछते है कि, वह अन्य पुरुष सर्वज्ञ है ? अथवा सर्वज्ञ है ? यदि कहो कि, वह अन्यपुरुष सर्वज्ञ है, तब तो ईश्वरके द्वैतापचि होगी अर्थात् सर्वज्ञ होनेसे ईश्वर दो हो जायेंगे, एक तो आगमका कर्त्ता और दूसरा जगतका कर्त्ता । और ऐसा होनेपर पहले जो तुमने ईश्वरको एक स्वीकार किया है, उसका बाध होगा । तथा उस ईश्वरके सर्वज्ञत्वको सिद्ध करनेवाले प्रमाणकी चर्चा करनेपर अनवस्था दोष भी होवेगा । अर्थात् जैसे प्रथम ईश्वरको सर्वज्ञ सिद्ध करनेके लिये तुमको दूसरा ईश्वर मानना पड़ा है, इसी प्रकार दूसरे ईश्वरको सर्वज्ञ सिद्ध करनेके लिये तीसरा और तीसरेको सिद्ध
रा. जै.शा.
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