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स्थाद्वादम.
॥३१॥
कजपचक्खा । ३ । एवमिह नाणसत्ती आयत्था चेव हंदि लोगंतं । जइ परिछिंदइ सधं को णु विरोहो भवे । राजै.शा. तत्थ । ४।" इत्यादि। | सोही धर्मसंग्रहणी नामक शास्त्रमें श्रीहरिभद्रजी सूरीश्वर कहते है कि-" किरणे गुण नही है। किन्तु द्रव्य है, और उन किरVणोंका जो प्रकाश है, वह तेज नामक द्रव्य नहीं है, किन्तु तैजसपुद्गलमय जो सूर्यकी किरणें है, उनका गुण है । इस कारण A आत्मारूपद्रव्यका गुणरूप जो ज्ञान है, वह आत्माके विना अन्य स्थानमें कैसे रह सकता है अर्थात् नहीं रह सकता है । १ ।।
ज्ञान जो है सो जिस देशमें ज्ञेय पदार्थ स्थित है, वहां जाकर उस ज्ञेयको नहीं जानता है, किन्तु अपनेमें स्थित हुए ही ज्ञेयको जानता है। इसमें विशेष यही है कि अचिंत्यशक्ति है अर्थात् यह एक आत्माके ज्ञानमें अचिन्त्यशक्ति है, ऐसा जानना चाहिये । २ । दृष्टान्त यह है कि, जैसे-चुम्बक पाषाणकी जो आकर्षण शक्ति है, वह चुम्बकमें रहकर ही भिन्न देशमें वर्तमान जो लोह है, उसको खैचती है और जगतमें प्रत्यक्ष कार्य करती हुई देखी जाती है । ३ । इसी प्रकार जो ज्ञान शक्ति है, वह आत्मामें स्थित हुई ही यदि लोकके अंत तक विद्यमान समस्त पदार्थोंको जानती है, तो उसमें वादियोंके कौनसा विरोध होता है। भावार्थ-जैसे चुम्बककी आकर्षणशक्ति चुम्बकमें स्थित हुई ही लोहको खैच लेती है, इसी प्रकार आत्माकी ज्ञानशक्ति आत्मामें स्थित हुई ही समस्तज्ञेयको जानती है, इस कारण इस विषयमें वादियोंको विरोध न करना चाहिये । ४ । इत्यादि ॥
अथ सर्वगः सर्वज्ञ इति व्याख्यानम् । तत्रापि प्रतिविधीयते । ननु तस्य सार्वयिं केन प्रमाणेन गृहीतम् प्रत्यक्षेण परोक्षेण वा । न तावत्प्रत्यक्षेण । तस्येन्द्रियार्थसन्निकर्पोत्पन्नतयाऽतीन्द्रियग्रहणाऽसामर्थ्यात् । नापि परोक्षेण । तद्धि अनुमानं शाब्दं वा स्यात् । न तावदनुमानम् । तस्य लिङ्गग्रहणलिङ्गिलिङ्गसम्बन्धस्मरणपूर्वकत्वात् । न च तस्य सर्वज्ञत्वेऽनुमेये किंचिदव्यभिचारि लिङ्गं पश्यामः। तस्याऽत्यन्तविप्रकृष्टत्वेन तत्प्रतिबद्धलिङ्गसम्बन्धग्रहणाऽभावात् ।
अब जो तुमने 'सर्वग' इस शब्दका सर्वज्ञ अर्थ किया है. अर्थात् ईश्वरको सर्वज्ञ माना है, इसका भी खंडन करते है। हम पूछते है कि, तुमने उस ईश्वरके सर्वज्ञपनेको किस प्रमाणसे ग्रहण किया ( जाना ) है । प्रत्यक्ष प्रमाणसे अथवा परोक्ष प्रमाणसे | यदि कहो कि, प्रत्यक्षप्रमाणसे हमने ईश्वरको सर्वज्ञ जाना है, सो नहीं । क्योंकि, वह प्रत्यक्षप्रमाण इंद्रिय और पदार्थ इन दोनोंके
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