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IN अपराध किया है अर्थात् तुम ईश्वरके कर्ताको नित्य न मानकर ईश्वरको ही नित्य क्यों नहीं मानलेते हो । यदि कहो कि, ईश्वरका
कर्ता अनित्य है, तो ऐसी दशामें उस ईश्वरके कर्ताको बनानेवाला भी कोई दूसरा होना चाहिये और उसका भी कोई अन्य । इस प्रकार नित्य तथा अनित्य रूप विकल्पोंकी कल्पना करनेमें अनवस्था नामक दोप कभी दूर न होगा। । तदेवमेकत्वादिविशेषणविशिष्टो भगवानीश्वरस्त्रिजगत्कर्तेति पराभ्युपगममुपदर्योत्तरार्द्धन तस्य दुष्टत्वमाचनाटे । इमा एता अनन्तरोक्ताः कुहेवाकविडम्बनाः कुत्सिता हेवाका आग्रह विशेषाः कुहेवाकाः कदाग्रहा इत्यर्थस्त | लाएव विडम्बनाः विचारचातुरीबाह्यत्वेन तिरस्काररूपत्वाद्विगोपकप्रकाराः स्युर्भवेयुस्तेषां प्रामाणिकापसदानां|
येषां हे स्वामिन् त्वं नानुशासको न शिक्षादाता। || सो इस प्रकार एकत्वादि विशेषणोंका धारक जो भगवान ईश्वर है, वही तीन जगतका कर्ता है । इस पूर्वोक्त प्रकारसे आचार्य || श्लोकके पूर्वार्द्धद्वारा वैशेषिकोंके मतको दिखाकर अब उत्तरार्द्धसे उस वैशेषिकमतकी दुष्टताका कथन करते है । " इमाः" ये| ऊपर कही हुई " कुहेवाकविडम्बनाः" खोटे आग्रहरूप विडम्बनायें अर्थात् विचारकी चतुरतासे रहित होनेके कारण तिरस्काररूप होनेसे अपने दोषोंको छिपानेके प्रकार उन अधम न्यायवेत्ताओंके ( वैशेषिकोंके ) " स्युः" होवें । " येषां" जिनके हे खामिन् ! " त्वं" आप " अनुशासकः" शिक्षा देनेवाले "न" नही हो । भावार्थ-हे भगवन् ! आपकी आज्ञासे प्रतिकूल | वैशेषिकोंने जो विना समझे ईश्वरको जगत्का का मान लिया है, उस दोषको छिपानेके लिये ही उन्होंने ये एकत्व आदि .
विशेषण दिये हैं। II तदभिनिवेशानां विडम्बनारूपत्वज्ञापनार्थमेव पराभिप्रेतपुरुषविशेषणेषु प्रत्येकं तच्छब्दप्रयोगमसूयागर्भमा
विर्भावयाञ्चकार स्तुतिकारः । तथा चैवमेव निन्दनीयं प्रति वक्तारो वदन्ति । स मूर्खः, स पापीयान् , सह दरिद्र इत्यादि । त्वमित्येकवचनसंयुक्तयुष्मच्छब्दप्रयोगेण परमेशितुः परमकारुणिकतयाऽनपेक्षितस्वपरपक्षवि-IN भागमितरशास्तृणामसाधारणमद्वितीयं हितोपदेशकत्वं ध्वन्यते । स्तुतिके कर्ता आचार्यने वैशेषिकोंके अभिप्रायोंको विडम्बनारूप विदित करनेके लिये ही उनके अभीष्ट जो ईश्वरके विशेषण । है, उनमें प्रत्येक विशेषणके साथ ईर्षाके धारक ' तत् ' इस शब्दका प्रयोग किया है । और निन्दाकरनेयोग्य पुरुषके प्रति