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तदुद्धर्तुं शक्तो नियतमविसंवादिवचन
स्त्वमेवातस्त्रातस्त्वयि कृतसपर्याः कृतधियः ॥ ३२॥ मलार्थ-खेद है कि इंद्रजाली सरीखे अधम अन्य दर्शनवालोने तत्त्व अतत्वका मिश्रण होजानेसे भयंकर ऐसे अंधकारमें यह जगत् डालरक्खा है सो इस जगत्का उद्धार करनेकेलिये आप ही समर्थ है । क्योंकि आपके वचन विसंवादरहित है। हे जगत्के रक्षक ! इसीलिये बुद्धिमान् लोग आपकी सेवा करते है। ___ व्याख्या-इदं प्रत्यक्षोपलभ्यमानं जगद्विश्वम्। उपचाराजगद्वतः जनः। हतपरैः [हता अधमा ये परे तीर्थान्तरीया हतपरे तैः]मायाकारैरिवैन्द्रजालिकैरिव [शाम्बरीयप्रयोगनिपुणैरिवेति यावत् ] अन्धतमसे निविडान्धकारे [हा इति खेदे] विनिहितं विशेषेण निहितं स्थापितं पातितमित्यर्थः। अन्धं करोतीत्यन्धयति । अन्धयतीत्यन्धम्।
तच्च तत्तमश्चेत्यन्धतमसम् । “समवान्धात्तमसः" इत्यत्प्रत्ययः। तस्मिन्नन्धतमसे । कथंभूतेऽन्धतमसे इति? | द्रव्यान्धकारव्यवच्छेदार्थमाह-तत्त्वाऽतत्त्वव्यतिकरकराले।। __ व्याख्यार्थ-यह, अर्थात् प्रत्यक्ष दीखता हुआ विश्व। विश्वशब्द उपचारसे विश्ववर्ती जनोको कहता है। अधमको हत कहते है |Tal
और अन्य दर्शनवालोको यहांपर पर कहा है इसलिये हत तथा पर शव्दके मिलानेसे हतपर शब्द बनजाता है । औरका और दिखानेवाले जादूगरको मायाकार कहते है। 'हा' शब्द खेद अर्थमें आता है। इसलिये ऐसा अर्थ होना चाहिये कि प्रत्यक्ष | दीखते हुए इन संसारी जनोको इंद्रजालीके समान अन्यथा प्रतीति करानेवाले अधम अन्य दर्शनवालोने, खेद है कि; अत्यन्त | निविड़ अन्धकारमें सर्वथा पटक रक्खा है । जो अंधा बनादे उसको भी अंध कहते है। अंधा करनेवाला जो तम हो वह लाअन्धतमस कहाता है। यहांपर अन्धशब्द पूर्व रखकर तथा तमसू शब्द आगे रखकर मिलानेपर "समऽवाऽन्धात्तमसः" इस सूत्रकर
अ प्रत्यय होजाता है और वह प्रत्यय तमसके अंतमें मिलकर अन्धतमस शब्द बना देता है । इस अंधकारको कोई बाह्य अंधकार न समझले इसलिये कहते हैं कि यह अन्धकार कैसा है कि जो तत्व अतत्वके मिश्रण होजानेसे भयानक होरहा है।
तत्त्वं चाऽतत्त्वं च तत्त्वातत्त्वे । तयोर्व्यतिकरो व्यतिकीर्णता व्यामिश्रता स्वभावविनिमयस्तत्त्वाऽतत्त्वव्यतिकरः।