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शब्दके साथ जो 'अपि' शब्द है उसका अर्थ विस्मय होना है । तथा जो 'वाऽभ्येतु' में 'वा' शब्द पड़ा है उसका अर्थ आगे | दोपका समुच्चय करना है । जिस प्रकार 'देव है या दानव,' ऐसा अर्थ होनेपर संस्कृत भाषामें 'देवो वा दानवो वा' ऐसा बोला |
जाता है । यहांपर भी ऐसा अभिप्राय है कि मुक्त हुआ भी जीव, आश्चर्य है कि फिर संसारमें आफसै । यह तो पहिला दोष हुआ। दूसरा दोष यह है कि मोक्ष जाते जाते यह संसार संसारी जीवोंसे कभी खाली होजायगा। भवशब्दका ही अर्थ संसार
है। सो भवस्थ जीवोंसे यह भव शून्य होजायगा । अर्थात् संसारी जीवोंसे यह संसार खाली होजायगा। यह दूसरा दोष है। all इदमत्राकृतं 'यदि परिमिता एवात्मानो मन्यन्ते तदा तत्त्वज्ञानाऽभ्यासप्रकर्षादिक्रमेणापवर्ग गच्छत्सु तेषु
संभाव्यते खलु स कश्चित्कालो यत्र तेषां सर्वेषां निर्वृतिः। कालस्याऽनादिनिधनत्वादात्मनां च परिमितत्वात् संसावारस्य रिक्तता भवन्ती केन वार्यताम् ? समुन्नीयते हि प्रतिनियतसलिलपटलपरिपूरिते सरसि पवनतपनातपनज
नोदश्चनादिना कालान्तरे रिक्तता। न चायमर्थः प्रामाणिकस्य कस्यचित्प्रसिद्धः संसारस्य स्वरूपहानिप्रसङ्गात् । तत्स्वरूपं ह्येतद्यत्र कर्मवशवर्तिनः प्राणिनः संसरन्ति समासाएंः संसरिष्यन्ति चेति । सर्वेषां च निर्वृतत्वे संसारस्य वा रिक्तत्वं हठादभ्युपगन्तव्यम् । । यहांपर ऐसा तर्क होता है कि यदि संसारमें जीव परिमित ही मानेगये है तो जब मोक्षका कारणरूप तत्त्वज्ञान वढने लगेगा। तब जीव क्रम क्रमसे मोक्षको जानेलगैगे सो संभावना होती है कि किसी दिन संपूर्ण संसारी जीवोंकी मुक्ति होजायगी। क्योंकि काल तो अनादि अनंत है तथा संसारी जीव परिमित हैं इसलिये कभी न कभी अवश्य संपूर्ण जीव मोक्षमें पहुच रहेगे। ऐसा ला होनेसे फिर संसारको संसारी जीवोंसे खाली होते हुए कोन रोकसकता है ? ऐसा देखाजाता है कि नीचेसे किसी निश्चित ऊंचाई || तक जो सरोवर जलसे भरा होता है वह कुछ.समयमें वायुसे तथा सूर्यकी गरमीसे तथा मनुष्योंके उलीचने आदि कारणोंसे जलरहित होजाता है । संसारी जीवोंसे संसारका खाली होजाना यह दोषरूप इसलिये माना है कि ऐसा होना किसी भी प्रमाणवेत्ताको पसंद नहीं है । क्योंकि; यदि ऐसा ही हो तो संसारके खरूपकी ही हानि होजायगी। जिसमें पडे हुए कर्मके परवश जीव संसरण अर्थात् परिभ्रमण करते आये है तथा कर रहे हैं और इसी प्रकार सदा करते रहेंगे वह संसार है । यही संसारका