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बा
स्थाद्वादम.
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॥२०४॥
पर्यायार्थिकश्चतुर्की । ऋजुसूत्रः शब्दः समभिरूढ एवंभूतश्च । ऋजु वर्तमानक्षणस्थायि पर्यायमात्रं प्राधान्यतः राजै.शा. सूत्रयन्नभिप्राय ऋजुसूत्रः। यथा सुखविवर्तः सम्प्रत्यस्तीत्यादिः । सर्वथा द्रव्याऽपलापी पुनस्तदाभासः। यथा । ताथागतमतम् । कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपद्यमानः शब्दः । यथा बभूव भवति भविष्यति सुमेरुरित्यादिः। तद्भेदेन तस्य तमेव समर्थयमानस्तदाभासः । यथा बभूव भवति भविष्यति सुमेरुरित्यादयो भिन्नकालाः शब्दा भिन्नमेवार्थमभिदधति भिन्नकालशब्दत्वात्ताहसिद्धाऽन्यशब्दवदित्यादिः।
पर्यायार्थिक नयके भेद चार है। ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ, एवंभूत । ऋजु अर्थात् केरल वर्तमान क्षणवर्ती पर्यायको जो प्रधानतासे ग्रहण करता हो उस अभिप्रायको ऋजुसूत्र कहते है । जैसे सुखीपना इस समय है । अर्थात् इस समय सुखी है, ५॥ इस समय दुःखी है इत्यादि वर्तमान पर्यायरूप जैसा हो तैसा कहनेका नाम ऋजुसूत्र है। जो सर्वथा अनादिनिधन द्रव्यका निषेध कर केवल पर्यायोंको ही अपने अपने समयमें सच्चा मानता है वह ऋजुसूत्राभास है। जैसे बौद्वोंका मत । कालादिके, भेदोंसे जो शब्दोंमें भेद पड़ता है उसके द्वारा जो वाच्य वस्तुको भी भिन्न भिन्न मानता है वह शब्दनय है। जैसे सुमेरु यद्यपि त्रिकालवी है परंतु 'सुमेरु' था इस वाक्यका अर्थ तो परोक्ष भूतकालके आश्रयसे कुछ जुदा ही है; तथा 'सुमेरु होगा इस वाक्यका अर्थ जुदा ही है; एवं 'सुमेरु है' इस वाक्यका अर्थ कुछ और ही है । इस शब्दभेदका आश्रय लेकर जो वस्तुको सर्वथा जुदा ही मानता है वह शब्दनयाभास है । जैसे ' सुमेरु है, सुमेरु था, सुमेरु होगा' इत्यादि जुदे जुदे कालवाची शब्दोंका अर्थ सर्वथा जुदा जुदा ही होता है । क्योंकि, और भी ऐसे बहुतसे शब्द है जो भिन्नकालोके कारण अर्थमें भेद डालते है इसलिये कालभेटके कारण अर्थमें भेद होना ही चाहिये ।
पर्यायशब्देपु निरुक्तिभेदेन भिन्नमर्थ समभिरोहन समभिरूढः । इन्दनादिन्द्रः, शकनाच्छकः पूर्दारणात अन्दर इत्यादिषु यथा । पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षीकुर्वाणस्तदाभासः । यथेन्द्रशक्रपुरन्दर इत्यादयः ॥२०४॥
शब्दा भिन्नाभिधेया एव भिन्नशब्दत्वात्करिकुरङ्गतुरङ्गशब्दवदित्यादिः। शब्दानां स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रिया१ विशिष्टमर्थ वाच्यत्वेनाऽभ्युपगच्छन्नेवंभूतः। यथेन्दनमनुभवन्निन्द्रः, शकनक्रियापरिणतः शक्रः, पूरणप्रवृतः