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N/ कुछ नियम भी नही रहेगा कि अमुकके किये हुएको अमुक ही भोगै । " जिस संतानमें जिस कर्मकी वासना उत्पन्न होती है उस
कर्मका फल उसी संतानमें होता है । जैसे जिस लाल कपाससे जो तंतु बनते है उस लाल कपासकी लालिमा भी उन्ही तंतुओंमें आती है; दूसरोमें नही" इस वचनके अनुसार आगेके नियमित आत्मामें उस पूर्व कर्मका फल होजाना असंगत नही है। बौद्धका यह उत्तर भी योग्य नहीं है। क्योंकि संतान तथा वासना जब सभी झूठे है तो सुखदुःखादि कैसे होसकता है ? यह विचार पहिले ही करचुके है। इसीप्रकार पुण्य पाप भी क्षणिकपना माननेसे नही बनसकते है । सुखदुःखका भोगना ही पुण्यपापरूप कर्मोकी प्रयोजनीभूत क्रिया है वह किसी प्रकार भी नही बनसकती है इस बातको सर्वथा नित्य मानने में दोप दिखाते समय अभी कह चुके है ।सो जिस प्रकार सर्वथा नित्य मानने में सुखदुःखोंका भोगना नही बनसकता है उसी प्रकार सर्वथा क्षणिक मानने में भी नही बनसकता है । इसलिये जब सुखदुःखोके भोगनेरूप क्रिया ही नही होसकती है तब पुण्यपापका बँधना भी कैसे संभव हो ?
किं चानित्यः क्षणमात्रस्थायी । तस्मिंश्च क्षणे उत्पत्तिमात्रव्यग्रत्वात्तस्य कुतः पुण्यपापोपादानक्रियार्जनम् ? द्वितीयादिक्षणेषु चावस्थातुमेव न लभते । पुण्यपापोपादानक्रियाऽभावे च पुण्यपापे कुतो निर्मूलत्वात् ? तदसत्त्वे । च कुतस्तनः सुखदुःखभोगः। आस्तां वा कथंचिदेतत् । तथापि पूर्वक्षणसदृशेनोत्तरक्षणेन भवितव्यम्उपादानाऽनुरूपत्वादुपादेयस्य । ततः पूर्वक्षणाद् दु:खितादुत्तरक्षणः कथं सुखित उत्पद्यते? कथं च सुखितात्ततः स| दुःखितः स्यात् ? विसदृशभागतापत्तेः। एवं पुण्यपापादावपि । तस्माद्यत्किंचिदेतत् । | और बौद्ध अनित्य उसको मानते है जो एक क्षणमात्रके अनंतर ही नष्ट होजाता हो । सो प्रथम एक क्षणपर्यत तो वह उपजनेमें| लाही लगा रहता होगा इसलिये उसी समय पुण्यपापका उपार्जन तो कर ही नही सकता है । और प्रथम क्षणके अनंतर वह ठहर
ही नही सकता है जो पुण्यपाप बॉधनेकी कुछ क्रिया करै । और यदि पुण्य पाप बॉधनेवाली क्रिया नही हुई तो निर्हेतुक पुण्य-1 पापका बंध कहांसे होगा और यदि पुण्यपापका बंध नही हुआ हो तो सुखदुःखोका भोगना कहांसे होगा? अब भला थोड़े समयके लिये यह मान भी लिया जाय कि पुण्यपापका बंध जिस किसी प्रकार हो जाता है, तो भी जैसा पूर्व समयमें आत्मा नष्ट हुआ| है, आगेका आत्मा भी तैसा ही उत्पन्न होना चाहिये । यदि पूर्वका आत्मा सुखी है तो आगेका सदा सुखी ही उपज यदि पहिला दुःखी है तो उस संतानमें उत्तरोत्तरके आत्मा सब दुःखी ही उपजने चाहिये। क्योंकि पूर्वका आत्मा उपादान कारण है।
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