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बोलना भी नहीं चाहिये । क्योंकि, प्रत्यक्षसे केवल देखा हुआ पदार्थ ही जाना जासकता है, हमारी चेष्टाका जानलेना असंभव ही है। इसलिये वह केवल प्रत्यक्ष प्रमाणको मानकर जो हमारे मतका खंडन करता है सो उसका बड़ा भारी प्रमाद है। | व्याख्या-प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणमिति मन्यते चार्वाकः; तत्र संनह्यते । अनु पश्चालिङ्गलिगिसम्बन्धग्रहणस्मरणा-10 नन्तरं मीयते परिच्छिद्यते देशकालस्वभावविप्रकृष्टोऽर्थोऽनेन ज्ञानविशेषेणेत्यनुमानम् । प्रस्तावात्स्वार्थानुमानम् । तेनानुमानेन लैङ्गिकप्रमाणेन विना पराभिसन्धिं पराभिप्रायमसंविदानस्य सम्यगजानानस्य तुश वादिभ्यो भेदद्योतनार्थः । पूर्वेषां वादिनामास्तिकतया विप्रतिपत्तिस्थानेषु क्षोदः कृतः । नास्तिकस्य तु वक्तुमपि नौचिती । कुत एव तेन सह क्षोदः?.इति तुशब्दार्थः। नास्ति परलोकः पुण्यं पापमिति वा मतिरस्य "नास्तिकास्तिकदैष्टिकम्" इति निपातनान्नास्तिकः। तस्य ] नास्तिकस्य लोकायतिकस्य वक्तुमपि न साम्प्रतं वचनमप्युच्चारयितुं नोचितम् । ततस्तूष्णीम्भाव एवाऽस्य श्रेयान् । दूरे प्रामाणिकपरिषदि प्रविश्य प्रमाणोपन्यासगोष्ठी। ___ व्याख्यार्थ-चार्वाक जो एक प्रत्यक्षको ही प्रमाण मानता है उसका अब खंडन किया जाता है । 'अनु' नाम पीछेसे अर्थात् चिन्ह
और चिन्हविशिष्टके प्रथम जाने हुए परस्पर अविनाभावरूप संबंधका स्मरण होनेके अनंतर, दूर देशवर्ती तशा परोक्ष कालवी अथवा परमाणु आदिक खभावसूक्ष्म वस्तुओंका जिस ज्ञानके द्वारा निश्चय कियाजाय वह अनुमान है। विशेष यह है कि अनुमान दो प्रकारका होता है; एक स्वार्थानुमान और दूसरा परार्थानुमान । परोपदेशके विना ही जो अनुमान हो वह खार्थानुमान कहाता है और जो अनुमान दूसरेके समझानेकेलिये शब्दद्वारा बोलाजाता है वह परार्थानुमान कहाता है । यहांपर प्रसगवश खार्थानुमान ही लेना चाहिये । जबतक वह इस अनुमान प्रमाणको न मानै तबतक दूसरोंके अभिप्रायको भलेप्रकार नहीं जानसकता है। इसलिये अन्यवादी अनुमानादि प्रमाणोद्वारा परलोकादिको माननेवाले होनेसे ऊहापोह करनेके तो योग्य है परंतु यह नास्तिक चार्वाक बोलनेके भी योग्य नहीं है, ऊहापोह करना तो दूर ही रहा । इस प्रकार पहिले जिन वादियोंका खंडन करचुके है उनकी अपेक्षा इस नास्तिकका मंतव्य अधिक तुच्छ जो दिखाया गया है वह 'तु' शब्दके बलसे। अर्थात्-उपर्युक्त स्तोत्रमें 'तु' शब्द जोपड़ा है उसीसे यह अभिप्राय झलकता है। पुण्य पाप परलोकादिक अदृष्ट वस्तु सब झूठ है ऐसी जिसकी मति है। वह नास्तिक कहाता है। इसी अर्थमें व्याकरणके "नास्तिकास्तिकदैष्टिकम्" इस निपातसूत्रसे नास्तिक शब्द बनाया गया है। इस चार्वाक