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रा.जै.शा.
स्याद्वादम.
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इसीलिया है। जिस प्रकार पूंसका बना
कारण तीक्ष्ण युक्तिरूप छुरीसे थोड़ा साविधं बुद्धिदुर्विधं जनं
धू होते हैं, किसी प्रकार भी स्थिर नहीं है इत्यादि जो सुगतद्वारा झूठी कल्पना कीगई है वह एक झूठे इंद्रजालके समान है। क्योंकि
बाजीगरोका बनाया हुआ अनेक प्रकारका इंद्रजाल अर्थात् मायामयी झूठा तमासा जिस प्रकार थोड़े समयतक तो भोले मनुष्योंकी बुद्धिको मोहित करता है परंतु अंतमें शीघ्र ही छिन्न भिन्न हो जाता है उसी प्रकार बौद्धका रचाहुआ यह मायामयी • झुठा तमासा भी मोले मनुष्योंके चित्तको कुछ समयपर्यंत तो मोहित करता है परंतु विचार करनेपर शीघ्र ही विघट जाता है।
इसीलिये इसका नाम सुगतका इन्द्रजाल है। विचार करनेपर प्रथम तो इस इंद्रजालके टुकड़े टुकड़े हो जाते है और पीछेसे सर्वथा नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार घूसका बनाहुआ स्तम्ब थोड़ासा छेदनेसे ही नष्ट हो जाता है उसी प्रकार यह सुगतका कल्पित किया हुआ इन्द्रजाल तृणोके समान निस्सार होनेके कारण तीक्ष्ण युक्तिरूप छुरीसे थोड़ासा छेदनेपर ही विघट जाता है। ____ अथ वा यथा निपुणेन्द्रजालिककल्पितमिन्द्रजालमवास्तवतत्तद्वस्त्वद्धतोपदर्शनेन तथाविधं वृद्धिदर्विध जनं विप्रतार्य पश्चादिन्द्रधनुरिव निरवयवं विलूनशीर्णतां कलयति तथा सुगतपरिकल्पितं तत्तत्प्रमाणतत्तत्फलाऽभेदक्षणक्षयज्ञानार्थहेतुकत्वज्ञानाऽद्वैताभ्युपगमादि सर्व प्रमाणाऽनभिज्ञं लोकं व्यामोहयमानमपि युक्त्या विचार्यमाणं विशरारुतामेव सेवत इति । अत्र च सुगतशब्द उपहासार्थः। सौगता हि शोभनं गतं ज्ञानमस्येति सुगत इत्युशन्ति । ततश्चाहो तस्य शोभनज्ञानता येनेत्थमयुक्तियुक्तमुक्तम् । इति काव्यार्थः। ___ अथवा जिस प्रकार चतुर वाजीगरने जो इन्द्रजाल बनाया हो वह यद्यपि झूठी वस्तुओंसे भरा हुआ है तो भी वह अद्धत वस्तु
ओंके दिखानेसे थोड़े समयतक भोले मनुष्योंके मनको मोहित करता है परंतु पीछे इंद्रधनुपके समान विलीन होता हुआ दीखता है । उसी प्रकार जिसमें प्रमाण तथा प्रमाणके फलको अभिन्न कहा है एवं क्षण क्षणमें सबका नाश बतलाया है तथा ज्ञानके अतिरिक्त
कोई बाह्य पदार्थ नहीं है इस प्रकारका उपदेश किया है ऐसा जो सुगतका बनाया हुआ इन्द्रजाल वह प्रमाणके खरूपको न समझनेवाले भोले मनुष्योंके चित्तको मोहित करता हुआ भी युक्ति पूर्वक विचारनेपर बिखर जाता है । इस श्लोकमें सुगत शब्द
केवल हसी करनेके अभिप्रायसे लिखा गया है। क्योंकि, गत नाम ज्ञान। सु अर्थात् सच्चा जिसका ज्ञान हो वह सुगत है ऐसा सुगत 8 शब्दका अर्थ सुगतके शिप्योने किया है। परंतु धन्य है उसके सुज्ञानको जिसने इस प्रकार असंगत युक्तिशून्य उपदेश किया।
इस प्रकार इस काव्यका अर्थ पूर्ण हुआ।
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