________________
योगिप्रत्यक्ष दूसरा हमलोगोंका साधारण प्रत्यक्ष । इन दोनोमेंसे योगिप्रत्यक्ष तो परमाणु साधने में उपयोगी हो नहीं सकता है क्योंकि; योगिप्रत्यक्ष अत्यंत परोक्ष होनेसे हमलोगों के गोचर ही नहीं है; केवल श्रद्धासे मानते आते हैं । अर्थात् जव श्रद्धामात्र ही गम्य है; अत्यंत परोक्ष होनेसे हमारे प्रयोजनमें ही नही आता है तो हम कैसे कह सकते हैं कि योगिप्रत्यक्षसे परमाणुरूप बाह्य पदार्थ भी जाना जासकता होगा ? हमलोगोंका प्रत्यक्ष भी परमाणुरूप बाह्य पदार्थको जाननेवाला मानना ठीक नहीं है । क्योंकि, हमलोगोंके इस साधारण प्रत्यक्षकी ऐसी शक्ति नहीं है जो इतने सूक्ष्म पदार्थको अपने गोचर करसकै । यह खंभ है यह घड़ा है इत्यादि स्थूल पदार्थों को ही हमलोग प्रत्यक्षसे समझ सकते हैं । प्रत्यक्षसे हमलोगों को यह परमाणु है यह परमाणु है इत्यादि निश्चय खनमें भी नहीं होसकता है । अनुमानज्ञान भी वहां ही प्रवर्तता है जहां उस अनुमानसे साधनेयोग्य विषयके नित्य ही साथ रहनेवाला हेतु किसी समय प्रत्यक्षसे निश्चित किया हो कि यह हेतु उस साध्यके साथ सर्वत्र और सदा रहता है । जो परमाणुरूप साध्य है वही यदि प्रत्यक्ष नही है तो उसके साथ किसी हेतुका रहना कैसे प्रत्यक्ष होसकता है ? इसीलिये अनुमान से भी परमाणुओंका सिद्ध होना दुर्लभ है ।
किं चामी नित्या अनित्या वा स्युः ? नित्याश्चेत्क्रमेणाऽर्थक्रियाकारिणो युगपद्वा ? न क्रमेण; स्वभावभेदेनाऽनित्यत्वापत्तेः । न युगपदेकक्षणे एव कृत्स्नार्थक्रियाकरणात् क्षणान्तरे तदभावादसत्त्वप्राप्तिः (तेः) । अनित्याश्चेत् क्षणिकाः कालान्तरस्थायिनो वा ? क्षणिकाचेत्सहेतुका निर्हेतुका वा ? निर्हेतुकाश्चेन्नित्यं सत्त्वमसत्त्वं वा स्यान्निरपेक्षत्वात् । अपेक्षातो हि कादाचित्कत्वम् । सहेतुकाश्चेत्किं तेषां स्थूलं किंचित्कारणं परमाणवो वा ? न स्थूलं; परमाणुरूपस्यैव बाह्यार्थस्याऽङ्गीकृतत्वात् । न च परमाणवः । ते हि सन्तोऽसन्तः सदसन्तो वा स्वकार्याणि कुर्युः ? सन्तश्चेत्कि - मुत्पत्तिक्षण एव क्षणान्तरे वा ? नोत्पत्तिक्षणे; तदानीमुत्पत्तिमात्रव्यग्रत्वात् तेषाम् ।
ये परमाणु किसी प्रमाणसे सिद्ध तो नहीं होते है परंतु फिर भी कुछ समयकेलिये मानलिये जांय तो भी इनका खरूप कैसा है ? क्या ये नित्य हैं अथवा अनित्य ? यदि नित्य हैं तो भी इनमेंसे एक एक की जो अनेक स्थूल पर्याय बनती हैं वे क्रम क्रमसे बनती। हैं अथवा एकसाथ ? इन परमाणुओंमें स्थूल पर्यायोंकी उत्पत्ति यदि क्रमसे मानी जाय तब तो अनेक समयोमें अनेक प्रकारके स्वभाव वदलने से ये परमाणु अनित्य ठहरते । क्योंकि; एक स्वभावका परिवर्तन होकर दूसरे खभावमें वस्तुका आजाना ही अनित्यपना