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स्याद्वादमं ॥१३३॥
करनेकी क्रिया ही न होगी तबतक अपनेसे अपनेकी उत्पत्ति कैसी । इसलिये जैसे दीपक अपनी भिन्न सामग्रीसे पैदा होकर भी राजै.शा, घटादिक पदार्थोको प्रकाशता है तैसे ज्ञान भी प्रकाशनेयोग्य पदार्थोंसे उत्पन्न न होकर ही पदार्थोंको प्रकाशता है। ज्ञान तथा ॐ
पदार्थोमें कार्यकारणरूप संबंध नही है। पदार्थोंसे न उपजकर ही ज्ञान पदार्थोको प्रकाशता है यह माननेसे घड़ेका ज्ञान घड़ेको क ही प्रकाशता है अन्यको नही ऐसा नियम कैसे होसकैगा ! " जिस पदार्थको ज्ञान प्रकाशता है उसीसे उस ज्ञानकी उत्पत्ति तथा
उसी पदार्थकासा उस ज्ञानका आकार जब हम मानते है तब तो यह नियम होसकता है कि घड़ेका ज्ञान घडेको ही प्रकाश सकता है ।
अन्यको नही । परंतु यदि ज्ञानकी उत्पत्ति नियत पदार्थसे न मानीजाय तथा उस ज्ञानका आकार भी जिसको वह प्रकाशता है। ) उसके समान न मानाजाय तो एक ज्ञान सभी पदार्थोको प्रकाशित क्यों नहीं करने लगै" । इस प्रकारकी जो शंका है वह सर्वथा - असत्य है। क्योंकि पदार्थोंसे उत्पन्न हुआ न माने तो भी योग्यताके अनुसार ज्ञानसे नियमित पदार्थका प्रकाश होना संभव है । जिस
समय जिस विषयके ज्ञानको रोकनेवाला कर्म नष्ट होजाता है उस समय उसी विषयका ज्ञान प्रकाशित होसकता है अन्य नहीं। a यही ज्ञानकी योग्यता है । पदार्थसे ही ज्ञानकी उत्पत्ति माननेवालोको भी योग्यता अवश्य माननी पड़ती है। यदि न माने तो धू संपूर्ण पदार्थ समीपमें रहनेपर भी अथवा कोई कोई पदार्थ समीपमें न रहै तो भी किसी एक पदार्थसे किसीके आत्मामें तो ज्ञान Ka उत्पन्न होता है और किसीके आत्मामें नहीं यह नियम कैसे वनसकैगा ? • तदाकारता त्वर्थाकारसंक्रान्त्या तावदनुपपन्ना; अर्थस्य निराकारत्वप्रसङ्गात् ज्ञानस्य साकारत्वप्रसङ्गाच्च । १ अर्थेन च मूर्तेनामूर्तस्य ज्ञानस्य कीदृशं सादृश्यमित्यर्थविशेषग्रहणपरिणाम एव साऽभ्युपेया। ततः “अर्थेन । । घटयत्येनां न हि मुक्त्वार्थरूपताम् । तस्मात्प्रमेयाधिगतेः प्रमाणं मेयरूपता" इति यत्किञ्चिदेतत् ।
__ ज्ञानको पदार्थाकार मानना तो पदार्थके आकारका फेरफार होते रहनेसे असिद्ध ही है। यदि ज्ञानको पदार्थके आकार ही । 1 माना जाय तो पदार्थका आकार ज्ञानमें आजानेसे पदार्थ तो निराकार होजाना चाहिये और ज्ञान साकार (रूपी) होजाना
चाहिये। परंतु ऐसा दीखता नही है । और मूर्तिमान् पदार्थके साथ अमूर्तिक ज्ञानकी समानता भी कैसी ? इसलिये किसी एक पदार्थको धु ॥१३३॥
ग्रहण करना, सवको नहीं ग्रहण करना यही ज्ञानकी पदार्थके साथ समानता माननी चाहिये । ऐसा सिद्ध होनेसे ही यह कहना ; भी किसी प्रकार सत्य होसकता है कि " जिस पदार्थके ज्ञानको रोकनेवाले कर्मका नाश होगया हो वही पदार्थ ज्ञानमें झलक