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स्याद्वादमं.
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वेशरूपो विपर्ययः । ब्राह्मप्राजापत्यसौम्यैन्द्र गान्धर्वयक्षराक्षसपैशाच भेदादष्टविधो दैवः सर्गः । पशुमृगपक्षिसरीसृप| स्थावरभेदात् पञ्चविधस्तैर्यग्योनः । ब्राह्मणत्वाद्यवान्तरभेदाविवक्षया चैकविधो मानुषः । इति चतुर्दशधा भूतसर्गः । वाधिर्य कुण्ठताऽन्धत्वजडताऽजिघतामूकताकौण्यपङ्गुत्वक्लैव्योदावर्तमत्ततारूपैकादशेन्द्रियवधतुष्टिनवकविपर्ययसिद्ध्यष्टकविपर्ययलक्षणसप्तदशबुद्धिवधभेदादष्टाविंशतिविधा शक्तिः । प्रकृत्युपादानकालभोगाख्या अम्भःसलि| लौघवृष्ट्यऽपरपर्यायवाच्याश्चतस्र आध्यात्मिकाः । शब्दादिविषयोपरतयश्चार्जनरक्षणक्षयभोगहिंसादोषदर्शनहेतुजन्मानः पञ्च वाह्यास्तुष्टयः । ताश्च पारसुपारपारापारानुत्तमाम्भउत्तमाम्भः शब्दव्यपदेश्याः । इति नवधा तुष्टिः । त्रयो दुःखविघाता इति मुख्यास्तिस्रः सिद्धयः प्रमोदमुदितमोदमानाख्याः । तथाध्ययनं शब्द ऊहः सुहृत्प्राप्ति|र्दानमिति दुःखविघातोपायतया गौण्यः पञ्च तारसुतारतारताररम्यकसदामुदिताख्याः । इत्येवमष्टधा सिद्धिः । धृ|तिश्रद्धासुखविविदिषाविज्ञप्तिभेदात् पञ्च कर्मयोनयः । इत्यादीनां ” संवरप्रतिसंवरादीनां च तत्त्वकौमुदीगौडपाद - भाष्यादिप्रसिद्धानां विरुद्धत्वमुद्भावनीयम् । इति काव्यार्थः ।
इसी प्रकार सांख्यमतियोंकी और भी नीचे दिखाई गई कल्पनाओं में तथा तत्त्वकौमुदीके गौड़पाद भाष्य आदिक ग्रन्थों में प्रसिद्ध सवर प्रतिसवरादिक कल्पनाओंमे अनेक प्रकारका विरोध विचारलेना चाहिये । वे नीचे लिखी हुई कल्पनाऐं ये है । - तम, मोह, महामोह, तामिस्र तथा अधतामिस्र ऐसे पांच प्रकारका अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष तथा अभिनिवेश ( आग्रह ) नामक विपर्यय है । ब्रह्मलोक उत्पन्न होने, प्रजापतिलोकमें उत्पन्न होने तथा सौम्यलोकमें, इन्द्रलोकमें, गन्धर्वों के लोकमें तथा यक्ष, राक्षस, पिशाचोंके लोकमें उत्पन्न होनेकी अपेक्षा देवताओंकी सृष्टि आठ प्रकार है । पशु, मृग, पक्षी, सर्प तथा वृक्षादिक स्थावर ऐसी पाच प्रकार तिर्यचोकी सृष्टि है । ब्राह्मणादिक अंतर्गत भेदोंकी अपेक्षा न करनेसे मनुष्य एक प्रकार ही गिने है। इस प्रकार प्राणियोंकी उत्पत्ति सर्व चौदह प्रकारसे है । बहिरापन ( श्रोत्रका ), कुठता ( वचनकी), अधापन (नेत्रोंका ), जड़पना (स्पर्शने - न्द्रियका), गंधका ज्ञान न होना ( नासिकाका ), तोतलापन ( जिव्हाका ), लुलापन ( हाथका ) लंगडापन ( पैरोंका ), नपुंसकपना ( लिंगका ), कब्जियात ( गुदासंबंधी ) तथा उन्मत्तता ( मनकी ) यह ग्यारह प्रकारका इंद्रियोंका बध तथा नौ तुष्टियोंके | नौ प्रकार विपर्यय तथा आठ सिद्धियोंके आठ प्रकार विपर्यय ऐसे सत्रह प्रकारका बुद्धिका बध यह सर्व अट्ठाईस प्रकारकी शक्ति
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रा. जै.शा.