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तमोगुणमें गौरवरूप धर्म रहते है । ये तीनो ही गुण एक दूसरेके उपकारी है । जो अव्यक्तनामक प्रथम तत्त्व है उसीका दूसरा N नाम प्रधान है । इस प्रधानका न तो आदि (उत्पत्ति ) है, न मध्यअवस्था है और न अंतावस्था (नाश ) है । यह अवयवरहित
अखंड एकरूप है, साधारण है, शब्द स्पर्श रूप गंध रहित है, अविनाशी है । इस प्रधानसे महान् है दूसरा नाम जिसका
ऐसा बुद्धितत्त्व उत्पन्न होता है । जो इस अमुक वस्तुका निश्चयरूप ज्ञान हुआ है वह ऐसा ही है; अन्यथा नही है ऐसे ज्ञानलारूप परिणामको बुद्धि कहते है । जैसे यह गौ ही है, घोड़ा नही है । अथवा जैसे यह ढूंठ ही है। पुरुष नही है । इस वुद्धिके ||
आठ आकार है । धर्म, ज्ञान, वैराग्य तथा ऐश्वर्य ये चार तो सात्त्विक ( सत्त्वगुणसे उत्पन्न हुए ) आकार है और अधर्मादिक चार इनसे उलटे तामसरूप ( तमोगुणसे उत्पन्न हुए ) आकार है।
बुद्धेरहङ्कारः। स चाभिमानात्मकः-अहं शव्देहं स्पर्शेहं रूपेहं गन्धेहं रसेहं स्वामी, अहमीश्वरः, असौ मया IN हतः, ससत्त्वोहममुं हनिष्यामीत्यादिप्रत्ययरूपः। तस्मात् पञ्च तन्मात्राणि शब्दतन्मात्रादीनि अविशेषाणि सूक्ष्म
पर्यायवाच्यानि । शब्दतन्मात्राद्धि शब्द एवोपलभ्यते न पुनरुदात्तानुदात्तस्वरितकम्पितपड्रजादिभेदाः । षड्जादयः शब्दविशेषादुपलभ्यन्ते । एवं स्पर्शरूपरसगन्धतन्मात्रेष्वपि योजनीयमिति । तत एव चाहङ्कारादेकादशे-) न्द्रियाणि च । तत्र चक्षुः, श्रोत्रं, घ्राणं, रसनं, त्वगिति पञ्च बुद्धीन्द्रियाणि । वाक्पाणिपादपायूपस्थाः पञ्च कर्मेन्द्रियाणि । एकादशं मन इति । __ बुद्धिसे अहंकार उपजता है । मै शब्द सुनता हू, मै स्पर्श करता हू, मै रूप देखता हू, मै गन्ध सूंघता हू मै रस चाखता हूं; मै खामी हूं, मै ईश्वर हूं, यह मैने मारा है; मै बलाढ्य हू, मै इसको मारूंगा इत्यादि रागद्वेषादिरूप अभिमानका ही नाम | अहंकार है । इस अहंकारसे शब्दतन्मात्रा आदिक पांच तन्मात्रा उपजती है । ये पांचों तन्मात्रा सामान्यरूप और सूक्ष्म पर्यायरूप है । शब्द तन्मात्रासे केवल शब्दका ही ज्ञान होता है, उसके उदात्त, अनुदात्त, खरित, कंपित तथा तन्त्री आदिकोंके विशेष स्वरूप नहीं जानपड़ते है । यह तन्त्रीकी ध्वनि है तथा यह तीव्र शब्द है इत्यादि विशेष स्वरूप तो विशेष शब्दोंसे जानपड़ते है । इसी प्रकार स्पर्श, रूप, रस, गन्ध तन्मात्राओंसे भी सामान्य ही स्पर्श, रूप, रस, गध उत्पन्न होते है। विशेष स्पर्शादि तो पीछेसे विशेष स्पर्शादिकोंसे उपजते हैं। जिस अहंकारसे पांच तन्मात्रा उपजती है उसीसे ग्यारह इंद्रिय भी उपजती है। इन ग्यारहमेंसे चक्षु,