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भिन्न है ऐसे आत्माका " न बन्धमोक्षौ " न बंध है और न मोक्ष सांख्यमतके प्रवर्तक कपिलगुरुके अनुयायी जनोने भी ऐसा ही कहा है
किंतु जितना बंध मोक्ष है वह सब प्रकृतिका ही है । “इसलिये न तो कोई जीव बँधता है, न छूटता है और न
| संसारमें परिभ्रमण करता है । जो परिभ्रमण करता है, छूटता है तथा बँधता है वह अनेकोका आश्रयरूप प्रकृति है" । यहां बन्ध प्राकृतिक | आदि समझना चाहिये । और प्रकृति आदिक पच्चीस तत्त्वोंके ज्ञानपूर्वक अपवर्ग अर्थात् अनन्त सुखको मोक्ष समझना चाहिये । यह चौथी कल्पना है । श्लोक में " इति " शब्द जो पड़ा है उसका अर्थ और भी अनेक प्रकारके भेदोंको ग्रहण करना है । इसलिये | यह समझना चाहिये कि इस प्रकारकी अन्य भी " विरोधि " अर्थात् परस्पर विरुद्ध ऐसी कल्पनाए इन “जडै:" मूर्खोने " कियन्न ग्रथितं " कितनी कितनी नहीं गूंथी है ' अर्थात् अनेक प्रकार लिखी है । यहांपर यथार्थ तत्त्वार्थके बोधसे रहित ऐसे कपिलमतानुयायी ही "जड " शब्दका अर्थ है । इन कपिलमतवालोने अपने शास्त्रोंमें इसी प्रकारकी अनेक खोटी कल्पनाए की हैं । " कियत्" शब्द जो श्लोकमें पड़ा है उससे तिरस्कार सूचित होता है । " कियत् " शब्दका अर्थ अनिश्चित बहुतसा है । उनके प्ररूपे हुए परस्पर विरुद्ध अर्थ भी अनंतो है इसलिये इस प्रकरण में निश्चित संख्या न लिखकर " कियत् " शब्द रक्खा है । लोकका यह अर्थ संक्षेपसे कहा ।
व्यासार्थस्त्वयम् । सांख्यमते किल दुःखत्रयाभिहतस्य पुरुषस्य तदपघातहेतुतत्त्वजिज्ञासा उत्पद्यते । आध्यात्मिकमाधिदैविकमाधिभौतिकं चेति दुःखत्रयम् । तत्राध्यात्मिकं द्विविधं शारीरं मानसं च । शारीरं वातपित्तश्लेष्मणां वैषम्यनिमित्तम् । मानसं कामक्रोधलोभमोहेर्ष्याविषयादर्शननिवन्धनम् । सर्व चैतदान्तरोपायसाध्यत्वादाध्यात्मिकं दुःखम् । बाह्योपाधिसाध्यं दुःखं द्वेधा आधिभौतिकमाधिदैविकं चेति । तत्राधिभौतिकं मानुपपशुपक्षिमृगसरीसृपस्थावरनिमित्तम् । आधिदैविकं यक्षराक्षसग्रहाद्या वेशहेतुकम् । अनेन दुःखत्रयेण रजःपरिणामभेदेन | बुद्धिवर्त्तिना चेतनाशक्तेः प्रतिकूलतया अभिसंबन्धोऽभिघातः ।
अब इसका अर्थ विस्तारसे लिखते है । तीन प्रकारके दुःखोंसे दुःखित हुआ जीव इन दुःखोंके नाश करनेकी इच्छासे नाशके | उपायभूत पदार्थोंको तलासता है । आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक ऐसे तीन प्रकारके दुःख है । इनमेंसे आध्यात्मिक | दुःख दोप्रकार हैं; पहिले शारीरिक तथा दूसरे मानसिक । शारीरिक दुःख तो वात, पित्त, कफके बिगड़नेसे ( विषम होनेसे )