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इस प्रकार सामान्यके स्थानमें विशेषशब्दका और विशेषके स्थानमें सामान्यशब्दका प्रयोग करनेवाले पुरुपको सामान्यमें भी उसको ग्रहण करनेवाला शुद्ध ज्ञान स्वीकार करना चाहिये। इस कारण निज निजको ग्रहण करनेवाले ज्ञानमें जुदे जुदे प्रतिभासित होनेसे सामान्य और विशेष ये दोनों ही परस्पर एक दूसरेसे भिन्न है। और इस कारण पदार्थका सामान्यविगेपात्मकपना सिद्ध
नहीं होता है । इस प्रकार खतंत्र सामान्य तथा विशेषका मंडनरूप कथन है। MT तदेतत्पक्षत्रयमपि न क्षमते क्षोदं; प्रमाणबाधितत्वात् सामान्यविशेपोभयात्मकस्यैव च वस्तुनो निर्विगानम
नुभूयमानत्वात् । वस्तुनो हि लक्षणमर्थक्रियाकारित्वम् । तच्चाऽनेकान्तवादे एवाऽविकलं कलयन्ति परीक्षकाः। तथा IN हि । यथा गौरित्युक्ते खुरककुद्सास्नालाङ्गूलविषाणाद्यवयवसंपन्नं वस्तुस्वरूपं सर्वव्यक्त्यनुयायि प्रतीयते तथा
महिष्यादिव्यावृत्तिरपि प्रतीयते। | वे ये तीनों ही पक्ष विचारनेपर नहीं ठहरते है । क्योंकि, प्रमाणसे बाधित है। कारण कि, सामान्य तथा विशेप इन दोनोंस्वरूप जो पदार्थ है, उसीका निर्दोषरूपसे अनुभव होता है। क्योंकि; वस्तुका लक्षण अर्थक्रियाकारित्व है । और परीक्षको को वह लक्षण अनेकांतवाद (जैनमत ) में ही परिपूर्णरूपसे दीखता है । सो ही दिखलाते है कि, जैसे गौ ऐसा कहनेपर खुर
थूवा गलकम्बल पूंछ और सीग आदि अवयवों ( शरीरके भागों ) सहित ऐसा गौका स्वरूप समस्त गोव्यक्तियोंमें रहनेवाला साप्रतीत होता है उसी प्रकार भैस आदि पशुओंसे भिन्नता भी प्रतीत होती है। IN यत्रापि च शवला गौरित्युच्यते तत्रापि यथा विशेषप्रतिभासस्तथा गोत्वप्रतिभासोऽपि स्फुट एव । शवलेति ।
केवलविशेषणोच्चारणेऽपि अर्थात्प्रकरणाद्वा गोत्वमनुवर्त्तते । अपि च शवलत्वमपि नानारूपं तथा दर्शनात् । ततो वक्ता शवलेत्युक्ते कोडीकृतसकलशवलसामान्यं विवक्षितगोव्यक्तिगतमेव शवलत्वं व्यवस्थाप्यते । तदेवमावालगोपालं प्रतीतिप्रसिद्धेऽपि वस्तुनः सामान्यविशेपात्मकत्वे तदुभयैकान्तवादः प्रलापमात्रम् । न हि क्वचित्कदाचिकेनचित्सामान्यं विशेपविनाकृतमनुभूयते । विशेषा वा तद्विनाकृताः । केवलं दुर्णयप्रभावितमतिव्यामोहंवशादेकमपलप्याऽन्यतरब्यवस्थापयन्ति वालिशाः। सोऽयमन्धगजन्यायः।
और भी-यह गौ शबल ( कावुरी ) है ऐसा जहां कहते है वहां भी जैसे विशेषका प्रतिभास होता है उसी प्रकार गोत्व
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