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व्यक्तियोंके व्यवधानमें क्यों नहीं मिलता है ' और सामान्यको सर्वगत तथा एक माननेपर जैसे गोत्व (गौओ में रहनेवाला) सामान्य सम्पूर्ण गोव्यक्तियों में व्यापकर रहता है; उसी प्रकार घट पट आदि व्यक्तियोंको भी क्यों नहीं ग्रहण करता है । क्योंकि; अविशेष है। अर्थात् वह सामान्य सर्वगत तथा एक है इस कारण उसके समक्ष में जैसी गौ है उसी प्रकार अन्य व्यक्तिये भी है । यदि कहो कि, वह सामान्य एक तथा असर्वगत है तो उस सामान्य विशेषरूप ठहरता है और तुम्हारे मतका भी खंड़न होता है ।
अथाऽनेकं गोत्वाऽश्वत्वघटत्वपटत्वादिभेदभिन्नत्वात्ते तर्हि विशेषा एव स्वीकृताः अन्योऽन्यं व्यावृत्तिहेतुत्वात् । न हि यगोत्वं तदश्वत्वात्मकमिति । अर्थक्रियाकारित्वं च वस्तुनो लक्षणम् । तच्च विशेषेष्वेव स्फुटं प्रतीयते । न हि । सामान्येन काचिदर्थक्रिया क्रियते; तस्य निष्क्रियत्वात्; वाहदोहादिका स्वर्थक्रियासु विशेषाणामेवोपयोगात् । तथेदं सामान्यं विशेषेभ्यो भिन्नमभिन्नं वा ? । भिन्नं चेदवस्तुः विशेषविश्लेषेणाऽर्थक्रियाकारित्वाऽभावात् अभिन्नं चेद्विशेषा एव तत्स्वरूपवत् । इति विशेषैकान्तवादः ।
यदि कहो कि गोत्व अश्वत्व ( घोडापना ) घटत्व पटत्व आदि भेदोंसे भिन्न होनेके कारण वह सामान्य अनेकरूप है तो | तुमने परस्परकी व्यावृत्ति करने में कारण ऐसे विशेष ही स्वीकार किये । क्योंकि; जो गोत्व है वह अश्वपनेरूप नहीं हो सकता है । | तथा पदार्थका लक्षण अर्थक्रियाकारित्व है । और वह अर्थक्रियाकारीपना विशेषोंमें ही प्रकटरूपसे प्रतीत होता है । कारण कि, | सामान्यसे कोई भी अर्थक्रिया नहीं की जाती है । क्योंकि; वह क्रियारहित है । और वाहना, दूध दोहना इत्यादिरूप जो अर्थक्रिया है उनमें विशेषोंका ही उपयोग होता है। तथा यह सामान्य विशेषोंसे भिन्न है ? वा अभिन्न है ? यदि कहो कि भिन्न है। तो तुम्हारा माना हुआ सामान्य कोई पदार्थ ही नहीं है । क्योंकि; विशेषसे भिन्न होनेके कारण इसमें अर्थक्रियाकारित्वका अभाव है । यदि कहो कि अभिन्न है तो विशेषोंके खरूपके समान वह सामान्य भी विशेष ही हुआ । विशेपोको ही सर्वथा | माननेवालोका इस प्रकार कहना है ॥
नैगमनयाऽनुगामिनस्त्वाहुः । -- स्वतन्त्रौ सामान्यविशेषौ; तथैव प्रमाणेन प्रतीतत्वात्। तथाहि । सामान्यविशेषावत्यन्तभिन्नौ; विरुद्धधर्माध्यासितत्वात् । यावेवं तावेवं यथा पाथः पावकौ । तथा चैतौ । तस्मात्तथा । सामान्यं हि गोत्वादि सर्वगतम् । तद्विपरीताश्च शवलशावलेयादयो विशेषाः । ततः कथमेपामैक्यं युक्तम् ?