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स्थाद्वादमं.
॥९३॥
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जै.मा. हितव्यापारा । ततश्च परोक्षमेव ज्ञानमिति । तदेतन्न सम्यक । यतः किमुत्पत्तिः स्वात्मनि विरुध्यते ज्ञप्तिर्वा । यद्युत्पत्तिः सा विरुध्यतां, न हि वयमपि ज्ञानमात्मानमुत्पादयतीति मन्यामहे । अथ ज्ञप्तिर्नेयमात्मनि विरुद्धा तदात्मनैव ज्ञानस्य स्वहेतुभ्य उत्पादात् । प्रकाशात्मनैव प्रदीपालोकस्य। अथ प्रकाशात्मैव प्रदीपालोक उत्पन्न इति परप्रकाशको ऽस्तु आत्मानमप्यतावेन्मात्रेणैव प्रकाशयतीति कोऽयं न्याय इति चेत् तत्किं तेन वराकेणाप्रकाशितेनैव स्थातव्यम् , आलोकान्तराद्वाऽस्य प्रकाशेन भवितव्यम् । प्रथमे प्रत्यक्षबाधो द्वितीये ऽपि सैवानवस्थापत्तिश्च ।
इस प्रकार अक्षरोंका अर्थ करके अब विस्तारपूर्वक भावार्थका कथन करते है। प्रथम ही भट्ट यह कहते है कि-'ज्ञान खसंविदित नहीं होता है, क्योंकि, निज आत्मामें क्रियाका विरोध है अर्थात् निजस्वरूपमें क्रिया नही होती है । दृष्टान्त-जैसे अच्छे प्रकारसे शिक्षाको प्राप्त हुआ भी नटका शिष्य अपने कंधेपर चढ़नेके लिये चतुर नहीं है अर्थात् अपने कंधेपर नही चढ़ सकता है और बहुत तीक्ष्ण (तीखी) भी तलवारकी धार अपने छेदनेके लिये व्यापारको नही धारण करती है अर्थात् आप आपको
नहीं काटती है; इसीप्रकार ज्ञान भी आप आपको नहीं जानता है; इसकारण ज्ञान परोक्ष (आप अपने प्रत्यक्षको न करने- वाला ) ही है; सो यह भट्टोंका कहना ठीक नही है; क्योंकि, हम पूछते है कि, ज्ञानकी निज आत्मामें उत्पत्ति विरुद्ध है
अर्थात् ज्ञान निजखरूपमें उत्पन्न नहीं होता है ? अथवा ज्ञानकी निज आत्मामें ज्ञप्ति विरुद्ध है .अर्थात् ज्ञान निजस्वरूपको जानता नहीं है ? यदि कहो कि-ज्ञानकी निज आत्मामें उत्पत्ति विरुद्ध है; तो वह विरुद्ध रहो, क्योंकि, हम (जैनी) भी निज kal आत्मामें ज्ञानकी उत्पत्ति नही मानते है । यदि कहो कि-ज्ञानकी निजआत्मामें ज्ञप्ति विरुद्ध है; तो यह ज्ञप्ति ज्ञानके निजखरूपमें विरोध नहीं करती है क्योंकि, जैसे अपने कारणोंसे प्रदीपका प्रकाश प्रकाशरूप ही उत्पन्न होता है, उसीप्रकार ज्ञान भी अपने कारणोंसे ज्ञप्तिरूप ( जाननेरूप ) ही उत्पन्न होता है । अब यदि ऐसा कहो कि, प्रदीपका प्रकाश प्रकाशरूप उत्पन्न हुआ है; अतः वह पर ( घट पट आदि ) का प्रकाशक रहो, प्रकाशरूप उत्पन्न होनेसे ही वह आपको भी प्रकाशता है, इस माननेमें कौनसा न्याय है ? तो हम पूछते है कि, क्या वह बेचारा प्रदीपका प्रकाश स्वयं अप्रकाशित ही रहेगा ? वा कोई क ॥९३ । दूसरा प्रकाश इस प्रदीपके प्रकाशका प्रकाशक होगा? यदि कहो कि,-प्रदीपका प्रकाश खयं अप्रकाशित ही रहेगा, तो इस कथनमें प्रत्यक्षसे बाधा आती है। भावार्थ-प्रदीपका प्रकाश जैसे घट आदि पदार्थोके खरूपका प्रकाशक है; उसी प्रकार अपने .