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आदिके वचन पौरुषेय है; उसी प्रकार सब वचन पौरुषेय है । और जो वेद है; वह वचनरूप है, अतः वेद भी पौरुषेय ही है । सो ही आचायोंने कहा है कि, " वर्णोंका समूह निश्चय करके तालु आदि स्थानोंसे उत्पन्न होता है और वेद वर्णों| ( अक्षरों ) स्वरूप है; यह भी निश्चित है, और वे तालु आदि स्थान पुरुषके होते है; अत: यह तुम्हारा आगम (वेद) अपौरुषेय है यह प्रतीति कैसे होवे अर्थात् नहीं हो सकती है । १ । "
श्रुतेरपौरुषेयत्वमुररीकृत्यापि तावद्भवद्भिरपि तदर्थव्याख्यानं पौरुषेयमेवाङ्गीक्रियते । अन्यथाऽग्निहोत्रं जुहु - यात्स्वर्गकाम इत्यत्र श्वमांसं भक्षयेदिति किं नार्थो नियामकाऽभावात् । ततो वरं सूत्रमपि पौरुषेयमभ्युपगतम् । अस्तु वाऽपौरुषेयस्तथापि तस्य न प्रामाण्यम् । आप्तपुरुषाधीना हि वाचां प्रमाणतेति । एवं च तस्याऽप्रामाण्ये तदुक्तस्तदनुपातिस्मृतिप्रतिपादितश्च हिंसात्मको यागश्राद्धादिविधिः प्रामाण्यविधुर एवेति ।
और तुमने भी श्रुति (वेदकी ऋचा ) को अपौरुषेय मान करके उस श्रुतिके अर्थके व्याख्यानको पौरुषेय ही स्वीकार किया है । यदि व्याख्यानको पौरुषेय न मानो तो 'अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः ' इस श्रुतिका जो |' स्वर्गकी इच्छा करनेवाला अग्निहोत्र नामक आहुति दे' ऐसा प्रसिद्ध अर्थ है; उसके स्थान में 'स्वर्गका इच्छक अमिहा ( कुत्ते ) के उत्र ( मांस ) की आहुति देवे, यह अर्थ भी क्यों नहीं होवे । क्योंकि, - ' इस शब्दका यही अर्थ करो, दूसरा अर्थ मत करो' इस विषय में कोई नियामक नही है । इसकारण जैसे- तुम श्रुतिके अर्थको पुरुषकृत मानते हो; उसी प्रकार श्रुतिको भी पुरुषकृत ही मानलो तो अच्छा है । अथवा चाहे तुम आगमको अपौरुषेय ही मानो; तथापि उस अपौरुषेय आगमकी | प्रमाणता नही है । क्योंकि; - वचनोंकी प्रमाणता आप्त ( यथार्थवक्ता ) पुरुषके आधीन है अर्थात् लोकमें यथार्थवादी पुरुषके कहे हुए वचन ही प्रमाणभूत माने जाते हैं । अतः अपौरुषेय आगम आप्तकृत न होनेसे प्रमाण नही है । और इसप्रकार उस तुम्हारे आगमकी अप्रमाणता सिद्ध होनेपर उस आगमका कहा हुआ और उस आगमका अनुसरण करनेवाली ( वेदोंके अनुकूल उपदेश देनेवाली ) स्मृतियोंद्वारा कहा हुआ जो हिंसारूप यागश्राद्ध आदिका करना है; वह प्रमाणरहित ही है ।
अथ योऽयं 'न हिंस्यात् सर्वभूतानि ' इत्यादिना हिंसानिषेधः स औत्सर्गिको मार्गः । सामान्यतो विधि - रित्यर्थः । वेदविहिता तु हिंसा अपवादपदं विशेषतो विधिरित्यर्थः । ततश्चाऽपवादेनोत्सर्गस्य वाधितत्वान्न श्रौतो