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और वेदोक्तविधिसे जो पशुओंकी हिंसा करते है, उनको स्वर्गकी प्राप्ति होती है यह उपकार वेदोक्त हिंसासे होता ही है; यह भी न कहना चाहिये । क्योंकि यदि हिंसाके करनेसे भी स्वर्गकी प्राप्ति होवे तो नरकनगरके दरवाजे खूब ढक जावें । भावार्थहिंसाके करनेसे भी जब खर्ग मिलेगा तब नरकमें कोई भी नही जायेगा । और जो कसाई आदि है, उनको भी स्वर्गकी प्राप्तिका होना सिद्ध होगा, जो कि तुमको अभीष्ट नही है । सो ही पारमार्प ( सांख्य ) कहते है कि, – वेदोक्तप्रकारसे यज्ञके स्तभ (खभे) को छेदकर पशुओंको मारकर और रुधिर ( खून ) से पृथ्वी में कादा मचाकर यदि यज्ञके कर्त्ता खर्गमें जावेंगे तो फिर नरकमें कोन जावेगा अर्थात् हिंसाके करनेवाले जब स्वर्ग में जायेंगे तब नरकमें कोई भी नहीं जायेगा । १ । ” और भी विशेषवक्तव्य यह है कि, यदि यज्ञके कर्त्ताओंको — अपरिचित ( बेजान बूझके ) निर्मल ज्ञानको नहीं धारण करनेवाले और जिन्होंने कभी अपना ( यज्ञकर्त्ताका ) उपकार नहीं किया ऐसे पशुओंके मारनेसे भी देवपदकी प्राप्ति होगी तो परिचित ( जन्मसे परिचयमें अर्थात् जानकारीमें आये हुए ) स्पष्ट ( निर्मल अर्थात् अधिक ) ज्ञानके धारक और अपने ( यज्ञकर्त्ताके ) ऊपर अत्यंत उपकार करनेवाले ऐसे जो माता, पिता आदि है, उनका वध करनेसे यज्ञकर्त्ताओंको देवपदसे भी अधिक ऊंचा पद प्राप्त होनेका प्रसंग होगा । यदि कहो कि, “ मणि ( रत्न ), मंत्र और औषधियोंका प्रभाव अचिन्त्य ( विचारमें न आनेवाला अर्थात् अत्यंत अधिक ) है । " इस वचनसे वैदिक (वेदके ) मंत्र अचित्य माहात्म्यके धारक है, इस कारण उन वैदिकमंत्रोंसे सस्कारको प्राप्त हुए पशुके मारनेसे यज्ञकर्त्ताओंके स्वर्गकी प्राप्ति हो ही सकती है । सो नहीं । क्योंकि; इस लोकमें विवाह, जातकर्म, तथा गर्भाधान आदि कर्मों में उन वैदिकमंत्रोंका व्यभिचार देखनेमें आता है; इस कारण नही देखे हुए स्वर्ग आदिमें भी उन मंत्रों के व्यभिचारका अनुमान किया जाता है । क्योंकि वेदोक्तमंत्रोंसे संस्कारको प्राप्तहुए ऐसे भी विवाहादि कर्मोंके होनेके पीछे विधवापन, अल्पआयुका धारक होना तथा दरिद्रताका प्राप्त होना इत्यादि उपद्रवों से दुःखित हजारों नरनारी देखे जाते है । और मंत्रसंस्कार के बिना भी विवाह आदि कर्मोंके करने पीछे हजारों नर नारी उनसे विपरीत अर्थात् सघवापन, पूर्णआयु व संपदाका धारक होना आदि सुखोंसे सुखी देखने में आते है । भावार्थ - जिनके वेदोक्तमंत्रोंसे बाह्रादि कर्म हुए है; वे तो कितने ही दुःखी और जिनके मंत्रोंसे विवाहादि नही हुए ऐसे कितने ही सुखी देखे जाते है । यदि कि; उस मंत्रसंस्कृत विवाहादिकमोंके उत्तमफल न होनेमें क्रियाका वैगुण्य ( फेरफार) अर्थात् जिस विधि ( प्रकार ) से