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________________ करता है।१ । वैधयंसे जो प्रत्यवस्थान है; वह वैधर्म्यसमा जाति है । भावार्थ-जैसे-शब्द अनित्य है कृतक होनेसे || al घटके समान इसी वादीके कहे हुए अनुमान प्रयोगमें 'शब्द नित्य है अवयवरहित होनेसे । क्योंकि जो अनित्य होता.HEYII Kaबह सावयव ( अवयवसहित ) देखा गया है। जैसे कि-घटादिपदार्थ अनित्य है इसकारण सावयव है । और घटके || all साधर्म्य कृतकत्वसे शब्द अनित्य है तथा घटके वैधम्ये (घटमें न रहनेवाले ) निरवयवत्वसे शब्द नित्य नहीं है अर्थात NI कृतकताको धारण करता हुआ शब्द अनित्य है और शब्द यद्यपि निरवयवत्वको धारण करता है तो भी नित्य नहीं है सामानने में कोई विशेषहेतु नही है; जिससे कि 'शब्द अनित्य ही है' यह माना जावे । इसप्रकार उसी निरवयवत्वरूप हेतुको || धर्थरूप दिखलाकर जो प्रतिवादी विरुद्ध भाषण करे अर्थात् शब्दमें नित्यता सिद्ध करे तो समझना चाहिये कि; यहां पर प्रतिवादीने वैधर्म्यसमा जातिका प्रयोग किया है ।२। उत्कर्षसे जो प्रत्यवस्थान है; वह उत्कर्षसमा जाति कहलाती है। भावार्थजो शब्द अनित्य है कृतक होनेसे घटके समान ' इसी वादीद्वारा किये हुए अनुमानके प्रयोगमें साध्यधीमें अर्थात् वादी जिस || पदार्थमें जिस धर्मको सिद्ध करता है; उसी पदार्थमें दृष्टान्तके किसी दूसरे धर्मको सिद्ध करे तो समझना चाहिये कि यहांपर प्रति-|| कवादी उत्कर्षसमा जातिका प्रयोग करता है। जैसे कि-कृतक होनेसे यदि घटके समान शब्द अनित्य है, तो घटके समान ही शब्द मूर्त भी होवे यदि शब्द मूर्त नहीं होता है तो घटके समान शब्द अनित्य भी मत हो। इस प्रयोगमें प्रतिवादी वादीके अनित्य त्वरूप साध्यके धर्मी शब्दमें घट दृष्टान्तके मूर्त्तत्वरूप दूसरे धर्मको सिद्ध करता है । ३ । अपकर्षसे जो प्रत्यवस्थान है, वह अप। कर्षसमाजाति कहलाती है । भावार्थ-साध्यधर्मीमेंसे दृष्टान्तमें नहीं रहनेवाले किसी धर्मको निकालकर जो प्रतिवादी वादीके विरुद्ध भाषण करे तो जानना चाहिये कि, यहांपर प्रतिवादीने अपकर्षसमा जातिका प्रयोग किया है। जैसे कि–कृतक हुआ घट कर्णइंद्रियका विषय नहीं देखनेमें आता है अर्थात् घट कृतक है । परंतु सुननेमें नहीं आता है। उसीप्रकार शव्दको भी श्रवणः | का विषय न होना चाहिये अर्थात् घटके समान शब्दको भी सुननेमें नहीं आना चाहिये । यदि ऐसा नहीं है अर्थात् घटके समान गब्द। श्रवणइंद्रियके अविषयल्प नहीं है तो घटके समान शब्द अनित्य भी मत हो । इस प्रयोगमें प्रतिवादी वादीके साध्यधर्मी शब्दमें पर शान्त श्रवणइंद्रियाविषयत्वधर्मको दूर करता है। ४ । ऐसे ये चार जातिय यहापर थोड़ासा जातियोंका खरूप दिखलानेके 7
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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