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स्याद्वादम
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साधर्म्यप्रयोगेणैव प्रत्यवस्थानम् । नित्यः शब्दो निरवयवत्वादाकाशवत् । न चास्ति विशेपहेतुर्घटसाधर्म्यात्कृत- राजै.शा.
कत्वादनित्यः शब्दो न पुनराकाशसाधान्निरवयवत्वान्नित्य इति । वैधर्येण प्रत्यवस्थानं वैधर्म्यसमाजातिर्भवति। ॐ अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदित्यत्रैव प्रयोगे स एव प्रतिहेतुवैधण प्रयुज्यते। नित्यः शब्दो निरवयवत्वात् ।।
अनित्यं हि सावयवं दृष्टं घटादीति । न चास्ति विशेषहेतुर्घटसाधात् कृतकत्वादनित्यः शब्दो न पुनस्तद्वैधानिरवयवत्वान्नित्य इति । उत्कर्पापकर्पाभ्यां प्रत्यवस्थानमुत्कर्पापकर्पसमे जाती भवतः । तत्रैव प्रयोगे दृष्टान्तधर्म
कंचित्साध्यधर्मिण्यापादयन्नुत्कपसमां जातिं प्रयुते । यदि घटवत् कृतकत्वादनित्यः शब्दो घटवदेव मूर्तोऽपि A भवतु । न चेन्मूर्तो घटवदनित्योऽपि माभूदिति शब्द धर्मान्तरोत्कर्षमापादयति । अपकर्पस्तु घटः कृतकः सन्-अ
श्रावणो दृष्टः । एवं शब्दोऽप्यस्तु । नो चेद् घटवदनित्योऽपि माभूदिति शब्दे श्रावणत्वधर्ममपकर्पतीति । इत्येताश्चतस्रो दिङ्मात्रदर्शनार्थं जातय उक्ताः । एवं शेषा अपि विंशतिरक्षपादशास्त्रादवसेयाः । अत्र त्वनुपयो-2 गित्वान्न लिखिताः। ___उन २४ प्रकारकी जातियों से जो साधर्म्यके द्वारा प्रत्यवस्थान है, वह साधर्म्यसमा जाति कहलाती है । भावार्थ-जैसे कोई बादी ' शब्द जो है, वह अनित्य है । कृतक होनेसे, घटके समान अर्थात् जैसे कृतक ( अपनी उत्पत्तिमें दूसरेके व्यापारको चाहनेवाला ) होनेसे घट अनित्य है, उसी प्रकार कृतक होनेसे शब्द भी अनित्य है, ऐसा अनुमानका प्रयोग करे अर्थात् घटके कृतक-ल त्वरूप धर्मको शब्दमें ग्रहण करके शब्दको अनित्य सिद्ध करे तब प्रतिवादी जो ' शब्द नित्य है निरवयव होनेसे आकाशके समान अर्थात् जैसे अवयवरहित होनेके कारण आकाश नित्य है, उसी प्रकार अवयवरहित होनेसे शब्द भी नित्य है । और घटके साधर्म्यरूप कृतकत्वको धारण करनेसे शब्द अनित्य है तथा आकागके साधर्म्यरूप निरवयवत्वको धारण करता हुआ भी भू शब्द नित्य नहीं है इस माननेमें कोई विशेपहेतु (नियामक ) नहीं है जिससे कि-शब्दको घटके समान अनित्य ही माना जावे और आकाशके समान नित्य न माना जावे। इस प्रकार आकाशके निरवयवत्वधर्मका धारक गन्दको दिखलाकर वाढीके कथनसे
॥७५॥ विरुद्ध भाषण करे अर्थात् शब्दमें नित्यता सिद्ध करे तो समझना चाहिये कि, यहा पर प्रतिवादी साधर्म्यसमा जातिका प्रयोग
1. निरवयवस्वरूप एव । २. घटरूपरष्टान्तवैधर्पण ।
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