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इति दोन्तः। ) किं कुर्वन्नित्याह ।-परमर्म भिन्दन (जातावेकवचनप्रयोगात् ) परमर्माणि व्यथयन् बहुभिरात्मप्रदेशैरधिष्ठिता देहावयवा मर्माणीति पारिभाषिकी संज्ञा तत उपचारात्साध्यस्वतत्त्वसाधनाव्यभिचारितया प्राणभूतः साधनोपन्यासोऽपि मर्मेव मर्म । कस्मात्तद्भिन्दन् मायोपदेशाद्धेतोः । माया परवञ्चनं तस्या उपदेशश्छलजातिनिग्रहस्थानलक्षणपदार्थत्रयप्ररूपणद्वारेण शिष्येभ्यः प्रतिपादनं तस्मात् । (“ गुणादस्त्रियां न वा" इत्यनेन हेतौ तृ-ला
तीयाप्रसङ्गे पञ्चमी)। NI व्याख्यार्थ-" अन्यदीयः" अन्य अर्थात् आपकी आज्ञाके सार ( रहस्य ) को न जाननेके कारण नहीं ग्रहण करने योग्य
है नाम जिनके ऐसे जो पर (नैयायिक ) है उनका अर्थात् उनके साथ उपदेशकरूपसे संबंधको धारण करनेवाला [ ' अन्यदीय'
यहां पर 'ईयकारके' इस सूत्रसे अन्तमें अर्थात् अन्यके आगे 'द' हुआ है । ] "मुंनिः" जो अक्षपाद ( गोतम ) ऋषी है; वह MI" अहो" आश्चर्य है कि; [ ' अहो ' यह उपहास ( हास्य ) सहित आश्चर्य को सूचित करता है । ] " विरक्तः " वैराग्यका || || धारक है । क्या करता हुआ वैराग्यको धारण करता है; सो कहते है। - " परमर्म " दूसरोंके ( सिद्धान्तियोंके ) मर्मीको NT MANTIC - परमर्म ' यहां पर जातिमें एकवचनका प्रयोग है; अतः वहुवचनका अर्थ किया गया है ] "भिन्दन् " भेदता ( दुःखित Ill करता ) हुआ । भावार्थ-बहुतसे आत्माके प्रदेशोंसे व्याप्त जो शरीरके अवयव है; वे अर्थात् शरीरके जिन भागोंमें बहुतसे ||
आत्माके प्रदेश रहते है वे भाग, मर्म कहलाते है; यह शास्त्रका संकेतित नाम है; इसकारण सिद्ध करने योग्य जो अपने अभीष्टी तत्त्व है; उनके साधनमें व्यभिचार रहिततासे अर्थात् सिद्ध करने में समर्थ होनेसे प्राणोंके समान आचरण करनेवाला ऐसा जो साधनका उपन्यास ( निर्दोष हेतुका स्थापन करना अथवा देना ) है; उसको भी उपचारसे मर्मके समान आचरण करनेसे मर्म कहते है; उस परमर्मको अर्थात् सिद्धान्तियोंके निर्दोष हेतुको खंडित करता हुआ । किससे उस परमर्मको भेदता हुआ | "मायोपदेशात् " मायाका उपदेश देनेरूप हेतुसे भावार्थ-परके ठिगनेरूप मायाका जो छल, जाति तथा निग्रहस्थान नामक | तीन पदार्थोंके कथनके द्वारा शिष्योंके प्रति उपदेश देना है; उस कारणसे । [ 'मायोपदेशात् ' यहांपर " गुणादस्त्रियां न वा" इस सूत्रसे हेतुमें तृतीयाका प्रसंग होनेपर पंचमी विभक्ति की गई है ]
कस्मिन् विषये मायामयमुपदिष्टवान् इत्याह।-अस्मिन् प्रत्यक्षोपलक्ष्यमाणे जने तत्त्वाऽतत्त्वविमर्शवहिर्मुखतया