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धारण करनेवाले द्रव्यको मूर्त कहते हो । यदि कहो कि; असर्वगतद्रव्यपरिमाणताको ही हम मूर्त कहते है, तो यह प्रथमपक्ष तो . हमारे दोषके लिये नहीं है । क्योंकि संमत है अर्थात् असर्वगत द्रव्यपरिमाणको ही तुम मूर्त कहते हो तो कहो, इससे हमारे | सिद्धान्तमें कोई दोष नहीं है । यदि कहो कि, रूप आदिका धारक जो द्रव्य है; वह मूर्त है तो यह तुम्हारा कहना ठीक नहीं है || क्योंकि जो असर्वगत है वह रूपादिमान है, ऐसी व्याप्ति नहीं हो सकती है । भावार्थ-जब तुम पहले असर्वगत द्रव्यको रूपा-जा दिमान सिद्ध करलो तब पश्चात् यह कह सकते हो कि; असर्वगत आत्मा रूपादिमान है; अतः मूर्त है, अन्यथा नहीं। और छा जो २ असर्वगत द्रव्य है, वह वह नियमसे रूपादिमान है, ऐसी व्याप्ति तुम नहीं कर सकते हो ॥ क्योंकि-तुम्हारे मतमें मन असर्वगत है तौभी रूपादिमान नही है । कारण कि; आकाश, काल, दिशा और आत्मा ये चारों सर्वगत (सब मूर्तद्रव्योंके संयोगके | धारक ) है, परममहत्परिमाणके धारक है और जो समस्त मूर्तद्रव्यरूप संयोगी है, उनके संयोगके आधारभूत है; अर्थात् सब मूर्तद्रव्योंका परस्पर संयोग इनमें होता है, ऐसा कहा है; और इस कथनसे मनमें इन आकाश आदिका धर्म न होनेसे सर्वगतपनेका | निषेध किया गया है अर्थात् आकाश, काल, दिशा और आत्मा ये चार ही सर्वगत है, ऐसा कहकर मनको असर्वगत सिद्ध किया | है। इस कारण आत्माका शरीरमें प्रवेश होना असिद्ध नहीं है, जिससे कि समस्त शरीर आत्मारहित हो जावें. क्योंकि; मनके । समान असर्वगतद्रव्यपरिमाणत्वरूप लक्षणका धारक जो मूर्त है, उसके प्रवेशमें कोई प्रतिवन्धक नहीं है । भावार्थ-जैसे तुम्हारे मतमें मूर्त मनका मूर्त शरीरमें प्रवेश होता है, उसी प्रकार हमारे मूर्त आत्माका भी मूर्त्त शरीरमें प्रवेश हो जावेगा; इस
कारण मूर्त आत्माका मूर्त शरीरमें प्रवेश न दिखलाकर जो तुम हमारे पक्षमें निरात्मक शरीर होजानेरूप दोष देते हो, वह नहीं INहो सकता है। और रूपादिमान लक्षणरूपमूर्तताको धारण करनेवाले अर्थात् रूप आदिके धारक
। मृत्तिका आदिमें जो प्रवेश होता है, उसका तो तुम निषेध नहीं करते हो और रूप आदिसे रहित ऐसा भी जो आत्मा है, उसके | IYमूर्तशरीरमें प्रवेशको मना करते हो यह बड़ा आश्चर्य है ।
अथात्मनः कायपरिमाणत्वे वालशरीरपरिमाणस्य सतो युवशरीरपरिमाणस्वीकारः कथं स्यात् । किं तत्परिमाणपरित्यागात्तदपरित्यागाद्वा । परित्यागाच्चेत्तदा शरीरवत्तस्याऽनित्यत्वप्रसङ्गात्परलोकाद्यभावानुषङ्गः । अथाऽपरित्यागात् । तन्न । पूर्वपरिमाणाऽपरित्यागे शरीरवत्तस्योत्तरपरिमाणोत्पत्त्यनुपपत्तेः । तदयुक्तम् । युवशरीरपरिमा