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साद्वादमं स्यात् । तस्माद्व्यापक एवात्मा युज्यते कायप्रमाणतायामुक्तदोपसद्भावादिति चेत्-न । सावयवत्वकार्यत्वयोः राजै.शा.
कथञ्चिदात्मन्यभ्युपगमात् । तत्र सावयवत्वं तावदसंख्येयप्रदेशात्मकत्वात् । तथा च द्रव्यालङ्कारकारौं' “ आका॥६ ॥
शोऽपि सदेशः सकृत्सर्वमूताभिसम्बधार्हत्वात्" इति । यद्यप्यवयवप्रदेशयोर्गन्धहस्त्यादिपु भेदोऽस्ति तथापि नात्र सूक्ष्मेक्षिका चिन्त्या । प्रदेशेष्वप्यवयवव्यवहारात्कार्यत्वं तु वक्ष्यामः ।
अब वैशेषिक कहते है कि; चाहे जिस प्रकारसे शरीरकी उत्पत्ति होवे भावार्थ-चाहे आत्मासे असंयुक्त परमाणुओंद्वारा शरीर उत्पन्न होवे, चाहे आत्मासे संयुक्त परमाणुओं द्वारा शरीर उत्पन्न होवे, इसमें हमको कोई विवाद नहीं है, तथापि शरीर अवयवों सहित है । इस कारण शरीरके प्रत्येक अवयवमें प्रवेश करता हुआ आत्मा भी अवयवों सहित हो जावेगा। और यदि आत्मा अवयव सहित हो जावेगा तो पट आदिके समान आत्माके कार्यत्वका प्रसंग होगा भावार्थ-जैसे पट आदि पदार्थ सावयव होनेसे कार्यरूप है, उसी प्रकार आत्मा भी सावयव होनेसे कार्य हो जावेगा और आत्माका कार्यरूप हो जाना आप (जैनिviयों) को अनिष्ट है । क्योंकि, कार्य अनित्य होता है और आपने आत्माको नित्य माना है । और यदि आत्माको कार्यरूप मानों
तो भी हम (वैशेपिक ) प्रश्न करते है कि, वह आत्मा विजातीय कारणोंसे आरभित होता है ? वा सजातीय कारणोंसे ? IN भावार्थ-जो कार्य होता है, उसका आरंभ ( उत्पत्ति ) कारणोंसे होता है; अत. हम प्रश्न करते हैं कि, वह आत्मारूप कार्य
विजातीयकारणोंसे उत्पन्न किया जाता है, अथवा सजातीय कारणोंसे उत्पन्न किया जाता है । यदि कहो कि,-विजातीय ( अपनीजातिसे भिन्न जातिके धारक ) कारणोंसे आरभित होता है, सो नहीं। क्योंकि; तंतु घटका आरंभ नहीं करते है अर्थात् जैसे |विजातीय तंतुओंसे घटरूपकार्य की उत्पत्ति नही हो सकती है। उसी प्रकार विजातीय कारणोंसे आत्मा भी उत्पन्न नहीं हो सकता है। यदि कहो कि, सजातीय कारणोंसे आत्मा उत्पन्न किया जाता है, तो यह भी नहीं कह सकते हो । क्योंकि पार्थिव आदि परमाणु विजातीय है। इस कारण आत्मत्वके सवधसे ही उन कारणों में सजातीयता होवे अर्थात् जिन कारणोंमें आत्माका सबंध होवे वे पाही कारण आत्माके सजातीय होवें । और उन सजातीय कारणोंसे यदि आत्मा उत्पन्न किया जाये तो आत्माओं द्वारा आत्मा उत्पन्न किया जाता है, यह सिद्धान्त आ खड़ा रहै। और आत्माओंद्वारा आत्मा उत्पन्न किया जाता है, यह मानना ठीक नहीं है। ॥६४॥
हेमचन्द्रगुणचन्द्री। २ गन्धहस्तिनाम तत्त्वार्थसूत्रोपरि दिगम्बराचार्यश्रीसमन्तभद्रस्वामिनिर्मित चतुरशीतिसहस्रश्लोकसख्यात्मकं महाभाप्यम् । तदादिजैनशास्त्रेषु।