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स्याद्वादमं.
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मानत हो तो फिर यह कैसे कहते हो कि; आत्माका अदृष्ट शरीरसे बाहर निकलकर अभिको ऊंचा जलाता है और वायुका तिरछा गमन कराता है, अतः तुमको इस अपने पूर्वापरविरुद्ध कथनपर विचार करना चाहिये ।
आत्मनां च सर्वगतत्व एकैकस्य सृष्टिकर्तृत्वप्रसङ्गः । सर्वगतत्वेनेश्वरान्तरनुप्रवेशस्य सम्भावनीयत्वात् । ईश्वरस्य वा तदन्तरनुप्रवेशे तस्याप्यकर्त्तृत्वापत्तिः । न हि क्षीरनीरयोरन्योऽन्यसंबन्धे एकतरस्य पानादिक्रिया अन्यतरस्य न भवतीति युक्तं वक्तुम् । किश्चात्मनः सर्वगतत्वे नरनारकादिपर्यायाणां युगपदनुभवानुषङ्गः । अथ भोगायतनाभ्युपगमान्नायं दोष इति चेन्ननु स भोगायतनं सर्वात्मना अवष्टभ्नीयादेकदेशेन वा । सर्वात्मना चेदस्मदभिमताङ्गीकारः । एकदेशेन चेत्सावयवत्वप्रसङ्गः परिपूर्ण भोगाभावश्च ।
और आत्माओंके सर्वगत होनेमें एक एक ( हरएक ) आत्माके सृष्टिकर्तृताका प्रसंग होगा। क्योंकि; सर्वगतपनेसे आत्माओं का ईश्वरके भीतर भी प्रविष्ट हो जाना संभावित है । भावार्थ - सर्वगत आत्मा ईश्वरके भीतर भी प्रवेश कर सकते है; अतः ईश्वरका जो जगत्कर्तृत्व है; वह प्रत्येक आत्मामें आजानेसे हर एक आत्मा जगतका करनेवाला हो जायेगा; जो कि, तुमको अनिष्ट है । अथवा यदि ऐसा कहो कि; आत्मा ईश्वरमें प्रवेश नहीं करते है; किन्तु ईश्वर उन सब आत्माओके भीतर प्रवेश करता है तो उस ईश्वरके अकर्तृता प्राप्त होगी। क्योंकि दूध और जलके परस्पर संबंधमें किसी एक्की पानादिक्रिया दूसरेकी नही होती है अर्थात् मिले हुए दूध तथा जलमेंसे कोई एक दूध अथवा जल पीने आदिमें आता है और दूसरा नही आता है; यह कहना ठीक नही है । भावार्थ — जैसे मिले हुए दूध और जलकी पानादिक्रिया एक ही होती है; उसीप्रकार व्यापकतासे परस्पर मिले हुए ईश्वर तथा आत्माओंकी क्रिया भी एक ही होगी अर्थात् ईश्वर जगत्को रचनेरूप क्रिया करेगा तो अन्य आत्मा भी जगतको रचेंगे और जो अन्य आत्मा जगतको रचनेरूप क्रिया न करेंगे तो ईश्वर भी जगतको नही रचेगा । और भी विशेष यह है कि; यदि तुम आत्माको सर्वगत मानोंगे तो मनुष्यपर्याय, नारकपर्याय आदि जो पर्याय है; उनको एक ही समयमें अनुभव करनेका प्रसंग होगा अर्थात् आत्मा सर्वव्यापक होनेसे मनुष्यपर्याय आदि समस्त पर्यायोंका एक ही समयमें अनुभव करेगा। जोकि तुम्हारे अनिष्ट है । अब यदि ऐसा कहो कि; हमने आत्माके भोगायतन को स्वीकार किया है; अर्थात् आत्मा शरीरमें रह कर ही भोग करता यह माना है; तो हम प्रश्न करते है कि वह आत्मा भोगायतनको सर्वरूपसे धारण करता है; अथवा एक देशसे अर्थात्
रा.जै. शा.
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