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स्थाद्वादम. ॥५७॥
में आत्यतिक सुख न होवे तो संसारसंबंधी सुखको त्याग देना ठीक नहीं है। और विषयोंकी रहिततासे उत्पन्न होनेवाला सुख है यहां भी अनुभव सिद्ध है अर्थात् इस संसारमें भी जो जो वैराग्यका अवलम्बन करके विषयोंका त्याग करते है, उनको एक प्रकारका विलक्षण सुख अनुभव गोचर होता है; इस कारण यदि मोक्षमें सांसारिक सुखसे विशिष्ट ( ऊचे दर्जेका) सुख नहीं है
तो, वह तुम्हारा मोक्ष दुःखरूप ही हो जावेगा। तथा जो एक भाजनमें मिले हुए जहर और सहतका त्याग किया जाता है, वह से भी विशेष सुखकी इच्छासे ही किया जाता है अर्थात् उस मिले हुए विषमधुका भक्षण करनेकी अपेक्षा भक्षण न करनेमें सुख - अधिक है; इसीकारण उन दोनोंका त्याग किया जाता है। यदि उनके त्यागमें विशेप सुख न हो तो त्याग कदापि न करें। और
भी विशेष यह है कि, जैसे जीवोंके संसारअवस्थामें सुख तो इष्ट है और दुःख अनिष्ट है, उसी प्रकार जीवोंके मोक्षअवस्थामें भी दुःखकी रहितता इष्ट है और सुखकी रहितता अनिष्ट ही है, अर्थात् जीव मोक्षमें भी दुःखसे छूटनेकी तथा सुखको भोगनेकी ही इच्छा करते है । इसकारण यदि तुम वैशेषिकोंका माना हुआ ज्ञान-सुख रहित ही मोक्ष होवे तो उस ज्ञान सुख रहित मोक्षमें | प्रेक्षावानोंकी प्रवृत्ति न होवे अर्थात् विचारवान पुरुष उस मोक्षकी प्राप्तिके लिये प्रयल न करें। परंतु विचारवानोंकी मोक्षके अर्थ
प्रवृत्ति होती है अतः मोक्ष 'ज्ञान तथा सुखरूप स्वभावका धारक है' यह सिद्ध हो गया। क्योंकि यदि ज्ञान-सुखरूप मोक्ष न ANVI होवे तो अन्यप्रकारसे मोक्षमें विचारवानोंकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। ___ अथ यदि सुखसंवेदनैकस्वभावो मोक्षः स्यात्तदा तद्रागेण प्रवर्त्तमानो मुमुक्षुर्न मोक्षमधिगच्छेत् । नहि रागिणां | मोक्षोऽस्ति । रागस्य वन्धनात्मकत्वात् । नैवम् । सांसारिकसुख एव रागो वन्धनात्मको विपयादिप्रवृत्तिहेतुत्वात् । मोक्षसुखे तु रागस्तन्निवृत्तिहेतुत्वान्न बन्धनात्मकः। परां कोटिमारूढस्य च स्पृहामात्ररूपोऽप्यसौ निवर्तते । “मोक्षे भवे च सर्वत्र निःस्पृहो मुनिसत्तमः” इति वचनात् । अन्यथा भवत्पक्षेऽपि दुःखनिवृत्त्यात्मकमोक्षाङ्गीकृतौ दुःखविषयं कषायकालुष्यं केन निषिध्येत । इति सिद्धं कृस्नकर्मक्षयात्परमसुखसंवेदनात्मको मोक्षो न वुद्ध्यादिविशेषगुणोच्छेदरूप इति । ॐ शंका-यदि ज्ञान तथा सुखरूप ही मोक्ष होवे तो उस ज्ञानसुखरूप मोक्षके रागसे प्रवृत्ति करता हुआ मुमुक्षुपुरुष मोक्षकोही
प्राप्त न होवे । क्योंकि राग बंधनरूप है; इसकारण रागियोंका मोक्ष नही होता है । समाधान-ऐसा न कहना चाहिये। क्योंकि;