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स्थाद्वादमा
सुखके अनुभवसे रहित है;
अनभवसे रहित है उसी प्रकार तयारे मोक्षमें भी जीव मयो ज्ञान रहित हो जाता है। दिन चाहनेवाला कोईराला का भी पुरुष अपने आत्माको मुख रहित बनाना नहीं चाहता है। क्योंकिः-सुख और दस इन दोनों ने एकका अभाव होनेपर दूसरेका अवश्य सद्भाव रहता है। अतः यह तुम्हारा मोक्ष दुलके अनुभव रूप है। भावार्थ-जहां सुन नहीं रहता है। यहां दुःल। और जहाँ दुःख नहीं रहता है; वहां मुख नियमसे रहता है और तुम्हारे मोक्ष सुनका अनुभव होता नहीं है। अतः यह तुम्हाग. मोक्ष दु खके अनुभव रूप (दुखरूप ) है । और इसी कारण तुन्दाग उपहास भी सुना जाता है । वह यह है-"न्यायदानके कर्त्ता गोतममुनि मनोहर वृंदावनम शृंगाल (गीदड ) होनेकी इन्छाके कग्नेको नो अच्छा मममने है । पग्नु वैगेषिकों की। मुक्तिमें जानेकी इच्छा नहीं करते हैं । भावार्थ-गोतम ऋगी वैशेषिकों के ज्ञान-सुन रहित मोक्षमें जानेमे दायनमें शृगाल हो। जाना अच्छा समझते हैं । और उपाधिसहित, मर्यादाके धारक ( इन देवको यहां इतने समय ही मुन मिलेगा इनमे अधिक नहीं । ऐसी हद्दवाले ) तथा परिमित (इमको यहा इम इन प्रकारका इतना ही सुन मिलेगा. इससे अधिक नहीं. इस प्रकारके परिमाण अर्थात् अदाज वाले ) आनंदको देनेवाला जो स्वर्ग है; उमगे भी अधिक उपाधिरित. मर्यादारहित और अपरिमाण सुलको पारण करनेवाला तथा नहीं मलीन हुआ है; ज्ञान जिममें ऐना अर्थात् परिपूर्ण निर्गल जाननहित ऐना मोक्ष कहते हैं। और यदि आत्मा पापाणके समान जटरूप ही उस मोक्षअवसाम हो तो ऐसे मोक्षने पूर्णता हो अर्थात् उम मोक्षमे पूरा पढो । ससार ही अच्छा रहो कि, जिसमें दु खसे कलुपित ऐसा भी कुछ २ सुन चीन २ में भोगा जाना है । भावार्थ-युमके प्रभावरूप
मोक्षसे ससार ही अच्छा हैजिनमें कभी कभी थोड़ा २ सुग भोगनेमें आता है । तुम (वैगेपिक)ही विनार करो फि. क्या शाअल्प मुखका अनुभव करना अच्छा है ' या सब मुसका नाश हो जाना ही अच्छा है। ___ अथास्ति तथाभूते मोक्षे लाभातिरेकः प्रेक्षादक्षाणाम् । ते येवं विवेचयन्ति । मंमारे तावदुःखास्पृष्टं सुखं न।।
सम्भवति । दुःखं चावश्यहेयम् । विवेकहानं चानयोरेफभाजनपतितविषमधुनोरिव दुःशकमत एव द्वे अपि त्यज्येकाते । अतश्च संसारान्मोक्षः श्रेयान् । यतोऽत्र दुःखं सर्वथा न स्याद् । वरमियती कादाचित्कमुखमात्रापि त्यक्ता ॥५६॥ न तु तस्याः कृते दुःखभार इयान् व्यूढ इति ।
१ विकेन यापन पम्प न्याग.।