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स्याद्वादमं.
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| रा.जै.शा और जो सत्रूप पदार्थ हैं; उनके तो सत्ताका योग निष्फल ( व्यर्थ ) है । यदि कहो कि पढार्थों के स्वरूपसत्त्व है ही; तो फिर नपुंसक ( अकार्यकारी ) सत्ताके योगको माननेसे क्या प्रयोजन है ? | यदि कहो कि; सत्ताके योगके पहिले न तो पदार्थ सत् था और न असत् था, परन्तु सत्ताका योग होनेसे पदार्थ सत् हो गया सो यह भी कहनेमात्र है अर्थात् व्यर्थ है । क्योंकि ( पढार्थो में ) सत् तथा असत्से भिन्नरूप कोई तीसरा प्रकार ही नहीं हो सकता है । इस कारण 'सत् पदार्थों में भी किसी किसीमें सत्ता है' ऐसा वैशेषिकोंका वचन विद्वानों की सभा में उपहासके अर्थ कैसे न हो अर्थात् हो ही हो ।
ज्ञानमपि यद्येकान्तेनात्मनः सकाशाद्भिन्नमिष्यते तदा तेन चैत्रज्ञानेन मैत्रस्येव नैव विषयपरिच्छेदः स्यादात्मनः । अथ यत्रैवात्मनि समवायसम्बन्धेन समवेतं ज्ञानं तत्रैव भावावभासं करोतीति चेत् । न, समवायस्यैकत्वान्नित्यत्वाद्व्यापकत्वाच्च सर्वत्र वृत्तेरविशेषात्समवायवदात्मनामपि व्यापकत्वादेकज्ञानेन सर्वेषां विषयाववोधप्रसङ्गः । यथा च घटे रूपादयः समवायसम्बन्धेन समवेतास्तद्विनाशे च तदाश्रयस्य घटस्यापि विनाशः । एवं ज्ञानमप्यात्मनि समवेतं तच्च क्षणिकं ततस्तद्विनाशे आत्मनोऽपि विनाशापत्तेरनित्यत्वापत्तिः ।
यदि तुम ज्ञानको भी आत्मासे सर्वथा भिन्न मानोगे तो जैसे मैत्रके ज्ञानसे आत्माके विषयका ज्ञान नही होता है, उसी प्रकार उस चैत्रके ज्ञानसे भी आत्माके विपयका ज्ञान न होगा । भावार्थ - जैसे चैत्रनामक एक पुरुषसे मैत्रनामक दूसरे पुरुपका ज्ञान भिन्न है, अतः मैत्रके ज्ञानसे चैत्रके आत्माको पदार्थका ज्ञान नही होता है; उसी प्रकार चैत्रका ज्ञान भी चैत्रकी आत्मा भन्न | है, इस कारण चैत्रके ज्ञानसे चैत्रकी आत्माको भी पदार्थका ज्ञान न होगा । और ऐसा होगा तो आत्मा पदार्थके ज्ञानसे रहित | अर्थात् जडरूप ही हो जावेगा । यदि कहो कि, जिस आत्मामें ज्ञान समवायसंबधसे समवेत ( मिला हुआ ) है, उसीमे ज्ञान पदार्थोंका अवभास ( ज्ञान ) कराता है अर्थात् यद्यपि चैत्रका ज्ञान चैत्रकी आत्मासे भिन्न है, तथापि चैत्रकी आत्मामें समवायसे संबंधित है; अतः चैत्रकी आत्माको पदार्थका ज्ञान हो जाता है । सो नही । क्योंकि, तुम्हारे मतमें समवाय एक, नित्य और | व्यापक होनेसे सब पदार्थों में समानरूपसे रहता है; और जैसे समवाय व्यापक है, उसी प्रकार आत्मा भी सबमें व्यापक है; इस कारण एक आत्माके ज्ञानसे सब आत्माओंको पदार्थका ज्ञान हो जानेसे तुम्हारे अनिष्टकी प्राप्ति होगी । तथा जैसे घटमें रूप आदिक समवायसबधसे समवेत है और उन रूपआदिका नाश होनेपर उन रूपआदिके आधारभूत घटका भी नाश होता है, इसीप्रकार
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