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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । मिलते हैं, तथापि [स्वकं ] आत्मीक शक्तिरूप [स्वभावं] परिणामोंको [न विजहन्ति] नहीं छोडते हैं।
भावार्थ-यद्यपि छहों द्रव्य एक क्षेत्रमें रहते हैं, तथापि अपनी २ सत्ताको कोई भी द्रव्य छोडता नहीं है। इस कारण ये द्रव्य मिलकर एक नहीं हो जाते. सब अपने २ स्वभावको लिये पृथक् २ अविनाशी रहते हैं। यद्यपि व्यवहारनयसे बंधकी अपेक्षासे जीव
पुद्गल एक है, तथापि निश्चयनयकर अपने स्वरूपको छोडते नहीं है। ____ आगे सत्ताका स्वरूप कहते हैं:
सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया। भंगुप्पादधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का ॥८॥
संस्कृतछाया. सत्ता सर्वपदस्था सविश्वरूपा अनन्तपर्याया ॥
भङ्गोत्पादध्रौव्यात्मिका सप्रतिपक्षा भवत्येका ।। ८ ।। पदार्थ- [सत्ता] अस्तित्वस्वरूप [एका] एक [भवति ] है. फिर कैसी है ? [सर्वपदस्था] समस्त पदार्थोंमें स्थित है [ सविश्वरूपा] नानाप्रकारके स्वरूपोंसे संयुक्त है [अनन्तपर्याया] अनन्त हैं परिणाम जिसविपै ऐसी है [ भङ्गोत्पादध्रौव्यात्मिका ] उत्पादव्ययध्रौव्य स्वरूप है [सप्रतिपक्षा] प्रतिपक्षसंयुक्त है । ___ भावार्थ-जो अस्तित्व है, सो ही सत्ता है. जो सत्ता लिये है, वही वस्तु है. वस्तु नित्य अनित्य स्वरूप है । यदि वस्तुको सर्वथा नित्य ही माना जाय तो सत्ताका नाश होजाय; क्योंकि नित्य वस्तुमें क्षणवर्ती पर्यायके अभावसे परिणामका अभाव होता है. परिणामके अभावसे वस्तुका अभाव होता है । जैसे मृत्पिंडादिक पायोंके नाश होनेसे मृत्तिकाका नाश होता है । कदाचित् वस्तुको क्षणिक ही माना जाय तो यह वन्तु वही है जो मैने पहिले देखी थी. इस प्रकारके ज्ञानका नाश होनेसे वस्तुका अभाव हो जायगा. इस कारण यह वस्तु जो है, सो मैने पहिले देखी थी, ऐसे ज्ञानके निमित्त वस्तुको ध्रौव्य (नित्य ) मानना योग्य है । जैसे वालक युवा वृद्धावस्था विषै पुरुष वही नित्य रहता है. उसी प्रकार अनेक पर्यायोंमें द्रव्य नित्य है । इस कारण वस्तु नित्य अनित्य स्वरूप है, और इसीसे यह बात सिद्ध हुई कि, वस्तु जो है सो उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप है. पर्यायोंकी अनित्यताकी अपेक्षासे उत्पादव्ययरूप है, और गुणोंकी नित्यता होनेकी अपेक्षा धौव्य है. इस प्रकार तीन अवस्थाको लिये वस्तु सत्तामात्र होता है । सत्ता उत्पादव्ययधौव्यम्वरूप है । यद्यपि नित्य अनित्यका भेद है, तथापि कथंचित्प्रकार सत्ताकी अपेक्षासे एकता है । सत्ता वही है जो नित्यानित्यात्मक है । उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक जो है, सो सकल विस्तारलिये पदार्थोंमें सामान्य कथनके करनेसे सत्ता एक है, समस्त पदार्थों में रहती है. क्योंकि ‘पदार्थ है' ऐसा जो कथन है, और पदार्थ है' ऐसी जो जाननेकी प्रतीति है सो उत्पादव्यय