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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् आगें अजीव पदार्थका व्याख्यान किया जाता है। . . आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णस्थि जीवगुणा । तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥ १२४ ॥ संस्कृतछाया. आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेपु न सन्ति जीवगुणाः ।। तेषामचेतनत्वं भणितं जीवस्य चेतनता ।। १२४ ।। . पदार्थ-[आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेपु] आकाशद्रव्य कालद्रव्य पुद्गलद्रव्य धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य इन पांचों द्रव्योंमें [जीवगुणाः] सुखसत्ता बोध चैतन्यादि जीवके गुण [न] नहीं [सन्ति] हैं, [तेषां] उन आकाशादि पंचद्रव्योंके [अचेतनत्वं] चेतनारहित जड़भाव [भणितं] वीतराग भगवानने कहा है [चेतनता] चैतन्यभाव [जीवस्य ] जीवद्रव्यके ही कहा गया है। भावार्थ-आकाशादि पांच द्रव्य अचेतन जानने क्योंकि उनमें एक जड़ ही धर्म है । जीवद्रव्यमात्र एक चेतन है। आगे आकाशादिकमें निश्चय करके चैतन्य है ही नहीं ऐसा अनुमान दिखाते हैं, सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदीरत्तं । जस्स ण विजादि णिचं तं समणा विंति अजीवं ॥ १२५ ॥ संस्कृतछाया. सुखदुःखज्ञानं वा हितपरिकर्म चाहितभीरुत्वं । यस्य न विद्यते नित्यं तं श्रमणा विदंत्यजीवं ॥ १२५ ॥ पदार्थ- [यस्य] जिस द्रव्यके [ सुखदुःखज्ञानं ] सुखदुःखको जानना [वा] अथवा [हितपरिकर्म] उत्तम कार्योंमें प्रवृत्ति [च] और [अहितभीरुत्वं] दुःखदायक कार्यसे भय [न विद्यते] नहीं है [श्रमणाः] गणधरादिक [तं नित्यं] सदैव उस द्रव्यको [अजीवं] अजीव ऐसा नाम [विदंति] जानते हैं । भावार्थ-जिन द्रव्योंमें सुखदुःखका जानना नहीं है और जिन द्रव्योंमें इष्ट अनिष्ट कार्य करनेकी शक्ति नहीं है, उन द्रव्योंके विषयमें ऐसा अनुमान होता है कि वे चेतना गुणसे रहित हैं, सो वे आकाशादिक ही पांच द्रव्य हैं । आगें यद्यपि जीवपुद्गलका संयोग है तथापि आपसमें लक्षणभेद है ऐसा भेद दिखाते हैं। संठाणा संघादा वण्णरसप्फासगंधसद्दा य । पोग्गलवप्पभवा होति गुणा पज्जया य वह ॥ १२६ ॥ अरसमरूवमगंधमव्वत्तं चेदणागुणमसदं। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिहिट्ठसंहाणं ॥ १२७॥
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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